मेरी कहानियां
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वृक्ष
आज व्यथित हो उठा है
चोट खाने से
बिना किसी कुसूर के
चुपचाप, सहमें ,
आंसू बहते हुए.
वृक्ष ,
जो बना था
सृष्टि से मानव का मीत
गर्मी हो या शीत
मानव का बन सदा हितैषी ,
छायी थी हरियाली .
वृक्ष ,
आज मृत्यु की सेज में खड़ी है सृष्टि
अकाल मृत्यु होने से
चारो ओर के परिवेष ने
किया है धारण प्रदुषण के रूप में
जो विषाक्त बन चाय है वायुमंडल में .
वृक्ष,
आज भी मानव का मित्र है
चाहे तो मानव अब भी
इसे नया जीवन दे सकता है
बदले में उसे भी स्वच्छा वातावरण मिल सकता है
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