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१५ अगस्त का जश्न मानाने का दिन सबको पता हैं i लेकिन सही मायने में क्या हम सचमुच आजाद हैं ? क्या हम आजाद है सुरक्षा की दृष्टि से? आज भी हम क्यों अपनों से डर-डर के जीने को मजबूर हैं? हर जगह अराजकता ने जैसे जकड रखा हैं हम भारतियों को ? कुरीतियाँ तब भी था ,आज भी हैं i हर साल आजादी के दिन जश्न मनाया जाता है ,अगले दिन फिर सब भूल जाते हैं कि हम स्वतंत्र देश के नागरिक हैं i मुझे लगता है आज भी हमारे देश के लोग दिल से आजाद नहीं हैं वर्ना बिहार की आठ साल की बच्ची को आजादी का जश्न मानाने के लिए उसकी टीचर ने २ रु चंदा न देने पर इतनी बेहरमी से मारा कि उसके दाहिने
हाथ की हड्डी ही टूट गयी i बच्ची का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने रु.कल पापा से लाकर दूंगी कहा था.i परन्तु टीचर अपने गुस्से को काबू में रख नहीं पाई और बच्ची पर हाथ उठा डाली i पड़े-लिखे टीचर अगर अपना क्रोध पर संयम नहीं रख सके तो उस शिक्षा दान की आजादी पर भी प्रश्न -चिन्ह लग जाएगा i ऐसे टीचर को स्कूल में रखना ही भूल होगी i
एक ओर तो हम आजादी का जश्न मनाते है परन्तु असम में हर वर्ष स्वतंत्र या गणतंत्र दिवस पर पूरा असम बंद रहता हैं i सरकारी दफ्तरों,स्कूल,कॉलेज,डी सी.कार्यालय में झंडा फहराते हैं i परन्तु डर-डर के I अपने ही देश की आजादी मनाने के लिए डर बना रहना यह कैसी आजादी हैं ?२००४ के १५ अगस्त असम के इतिहास में काले दिन के रूप में अंकित है i यह दिन असम्वासी कभी नहीं भुला सकते i जी हाँ , उस दिन १५ अगस्त को आजादी मनाने गए छोटे-छोटे बच्चे धेमाजी के परेस ग्राउंड पर गए थे i सभी बच्चे बहुत खुश थे i लेकिन उन्हें यह कहाँ पता था कि वह जहाँ खड़े थे उसके नीचे आतंवादियों ने पहले से ही बम बिछा रखा हैं i देश की आजादी का गुण-गान गाते-गाते बच्चो की पलक झपकते ही परखच्चे उड़ गए थे I आजादी पलभर में ही मातम में बदल गयी थी I इस बोम ब्लास्ट में लगभग १७ बच्चों की स्पोट में ही मौत हुयी थी जिनमे ९ बच्चियां थी तथा ४० लोग घायल हुए थे I इश्वर उन बच्चों की आत्मा को शांति प्रदान करे i
सच कहू तो मेरा भारत सचमुच महान है i बशर्ते कि हम अपनी आजादी का सही व्यवहार करे I आईये पहला सकारात्मक कदम हम सभी भारतीय मिलकर बडाये i जय हिंद जय भारत i
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