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लम्बी कहानी कैंसर (पांचवा भाग )

मेरी कहानियां
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वक्त के साथ-साथ मेरा घाव भी भरने लगा i मैं उसी उत्साह के साथ शीघ्र अच्छे होने की कोशिश करती रही i समर्थ हर वक्त मेरी सेवा में लगे रहते i जिंदगी भी अजीब हैं कब कहाँ और किसे ठोकर लगे i लेकिन मेरा मानना यह था कि इंसान को संभलने के लिए ठोकर लगना बहुत जरुरी है I कैंसर से पीड़ित होना मेरे लिए भी जिन्दगी का एक सबक था I क्योंकि इसी मोड़ पर आकर मैंने जीवन को समझा था I अस्पताल प्रवास मेरे जीवन के लिए एक ऐसा अनुभव था जहाँ जीवन की हर पहलू को देखने-सोचने और परखने का एक बहुत बड़ा मौका था I कैंसर ऐसा रोग है जो इतनी जल्दी पनपता है कि रोगी को जीवन-मृत्यू कि लड़ाई लड़नी पड़ती है I हालाँकि आधुनिक विज्ञानं में आजकल काफी अच्छा इलाज है i परन्तु इसके साइड एफ्फेक्ट को नकारा भी नहीं जा सकता I बहुत ऐसे माता और बहनों से मिलने का मौका मिला जो कुछ तो अपनी गलती के कारण तो कोई अनजान होने के कारण एडवांस स्टेज पर अस्पताल में आना पड़ा था i रोगी की लाचारी ,बेबसी देखकर बहुत आहत हो जाती i बस उनके लिए प्रार्थना कर सकती थी i हाँ,कभी-कभी उन्हें धांढस भी बंधाती थी यह कर कि ईश्वर को सच्चे दिल से प्रार्थना करो i सब ठीक हो जायेगा i क्योंकि प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है i हमें इतना याद रखना हैं कि हम सर्व शक्तिमान के सामने खड़े हैं जिनसे दिल से प्रार्थना करके हम आरोग्य अवस्य प्राप्त करेंगे i
हर दिन जैसे मेरे लिए नया अनुभव था i कैंसर वार्ड के अधिकतर रोगी अपने रोग के कारण मात्र नहीं वल्कि मानसिक रूप से भी इतने भयभीत रहती कि मेरा मन बरबस उनके लिए दो सकारात्मक शब्द बोलने पहुँच जाते i क्योंकि मैं भी स्वयं उस दौर से गुजर चुकी थी i मेरी बातों से उनलोगों को कुछ हद तक राहत देती जिससे मुझे ख़ुशी होती i सच इंसान चाहे तो अपने जीवन को आनंद से भर सकता हैं i बशर्ते कि वह सकारात्मक दिशा में कदम उठाये उन्ही ईश्वर के सहयोग से i
हम जीवन में कितने असंतुस्ट रहते हैं i जबकि हर पल ये सांसे कितनी कीमती होते हैं i हम पग-पग पर गलतियां करते चले जाते हैं i हम ऐसा व्यव्हार भी करते हैं जो दूसरों को चोट पहुँचती हैं i मगर इसका एहसास तब करते हैं जब हमसे गलती हो चुकी होती हैं i अस्पताल प्रवास के दौरान ईश्वर ने मुझे इतना बड़ा मौका दिया कि मैं स्वयं को पहचान रही थी i मेरे अन्दर के तमाम राग द्वेष अब धीरे-धीरे मिटने लगा था i
वह दिन भी आ गया जब मेरा टांका भी डॉ. ने निकाल दिया i सबकुछ अच्छे से हो गया i बाकि था तो सिर्फ किमो और रेडीएशन i डॉ. के मुताबिक पूरा इलाज अनिवार्य था i मैं भी पूरी तरह तैयार हो चुकी थी I क्योंकि सत्य को मैंने अपनाना सीख लिया था i ईश्वर से शुक्रगुजार हूँ कि पल-पल जो जीवन मुझे मिला मैं अब व्यर्थ नहीं गवाना नहीं चाहती वह भी छोटी-छोटी बातें /अहम् में i इसीलिए मैं अब अपने जिंदगी अपने मुताबिक जीने का अभ्यास करने लगी i खुश रहने का प्रयास ने मुझे अस्पताल में स्थित सभी रोगी को भी खुश रहना सिखाने में जुट गयी i सच पहली बार एहसास हुवा कि किसी से ख़ुशी बांटना भी एक कितनी बड़ी बात हैं i हम हर समय एक दूसरों को देखकर हंस देते i कोई मायूस होते तो हम सकारात्मक रूप से उनका मनोबल बढ़ाते I माना कि हम कैंसर से पीड़ित हैं I पर इसी बात पर दुखी होकर आंसू बहाने से कुछ फायदा नहीं I बल्कि हमें ईश्वर का बहुत बहुत शुक्र है कि हम इस अस्पताल में इलाज के लिए आ पाए हैं I और हम जरुर अच्छे होंगे I मेरी बातों से उन्हें बहुत सुकून पहुँचता था I ओप्रेसन के बाद का दर्द का एहसास वहि समझ पाता है जो इस दौर से गुजर चुका है I अक्सर महिलाएं अपने-आपको ऐसे छोड़ देते जैसे ये दर्द उनका दुश्मन है I मगर मैं स्वयं पर अपनाया हुआ फ़ॉर्मूला उन्हें बताती और उनको उस दर्द से निकालने का प्रयास करती I ओप्रेसन के बाद दर्द स्वाभाविक है मगर हम अगर दर्द को ज्यादा महत्त्व देंगे तो वह शीघ्र जकड़ लेगा I इसीलिए मैं दर्द को तुल न देते हुए हमेशा हाथों को एक्सरसाइज करवाती रहती और चलती रहती I इसका असर यह हुआ कि औरते अब लगभग खुश रहने लगी I मैं खुश थी क्योंकि अब मैं समूह बन चुकी थी I

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