तुम मेरी कविता (कविता)
तुम मेरी कविता
*************
मेरी कल्पना की सजीव
प्रतिमूर्ति हो तुम
मेरी कविता का एक
अंग हो तुम!
तुम्हारी यादों को
ताजा करता हूँ कविता में
वही अदा बोलने की
मैं ढूढता हूँ तुम्हे
अपनी कविता में
मेरी कल्पना ………..हो तुम
रूठने की अदाए भी
क्या खूब हैं तुम्हारी
जब जाती हो तुम
देकर ढेरों यादे मुझे
मेरी कविता में वही यादें
सजीव बन आती हो तुम,
मेरी…………..हो तुम l
पल-पल यादें तरसाती हैं मुझे
और बनके कविता
सामने आती हो तुम
दूर हो पर करीब लगता हैं
जैसे पुकार रही हो तुम
मुझे मेरी कविता में ही
मेरी कल्पना ………….हो तुम l
*************************************
Read Comments