मित्रो , इंसान नजाने कितनी परीक्षाओं से (अनुभवों) गुजरता हैं l पर वही परीक्षा उसे उतनी ही ताकत भी देती है l जिसे सहकर वह और भी सशक्त बन जाता हैं l इनदिनों मैं एक बार फिर इन्ही अनुभवों से गुजरी हूँ l ईश्वर का लाख-लाख शुक्रिया कि मैं आज पुन : आपके सामने खड़ी हूँ l स्वस्थ हूँ l पिछले दिनों रूटीन चेकअप के दौरान मुझे पता चला कि मुझे ओवरियन सिस्ट हुआ हैं जिसे ओपरेशन करना जरुरी हैं l मेरा बाकी का टेस्ट सब नोर्मल हुआ l अत :मैं अपने अंकोलोजिस्ट से मिलने कोल्कता चली गई l उन्होंने मुझे सी .टी . स्केन के लिए कहा तो मैं पुन वापस आकर गुवाहाटी बेस हॉस्पिटल से सी .टी . स्केन करवाई l रिपोर्ट मिलने पर और चौक गई l डॉ. साहब ने बताया आपका सिस्ट तो कम हो गया हैं पर गोल ब्लाडर हुआ है l आप गैनोकोलोजिस्ट से मिलकर बताइए कब ओपरेशन करेगी ? गैनोकोलोजिस्ट मेम ने रिपोर्ट देखकर बताया l सिस्ट अभी कम हो गया हैं अभी इसका ओपरेशन नहीं कराने से भी होगा l दो महीने बाद आइये , सर बता रहे थे गोल ब्लाडर हुआ हैं l हाँ ,गोल ब्लाडर अभी छोटा हैं ,क्रिटिकल होने के पहले इसे करा लीजिये l फिर मैं सर्जन के समक्ष खड़ी थी उन्होंने कहा आप तय कर लीजिये कब ओपरेशन करेगी जैसे आप कहेगी हम ओपरेशन कर देंगे l वापस घर आकर मैंने सोचा जब ओपरेशन कराना ही हैं तो उस स्थिति के लिए क्यों इन्तजार करू जब पथरी बड़ा होगा दर्द से तडपुंगी कंडीशन खराब होगा बेहतर है छोटा ओपरेशन ही स्वीकार करू l अत: अगले सप्ताह ओ पि डी में मैंने सर जी को अपना फैसला सुना दिया l उन्होंने मुझे एडमिट होने के लिए कहा और शाम तक मैं एडमिट हो गई l जांच की प्रक्रिया शुरू हुई ब्लड ,यूरिन ,इ सी जी और फिर पि ए चेकअप l सबकुछ अच्छे से निपट गया सिर्फ मेरा ब्लड थोडा कम था l ९.५ जिसके लिए ब्लड डिमांड दिया गया l २८ जुलाई सुबह साढ़े आठ बजे मैं अपने पतिदेव के साथ ओपरेशन थियेटर की और चल पड़ी l सच बताऊ मुझे जरा भी डर नहीं लग रहा था l एक्साइटेड थी ,ऐसा महसूस हो रहा था कि यह छोटा ओपरेशन ही तो हैं फिर क्यों डरना l मेरे साथ वैसे भी इश्वर का साथ हैं इन शल्य चिकित्सकीय टोली के रूप में अत : मैं निश्चिन्त थी l शल्य कक्ष की निश्तब्द्धा शल्य चिकित्सकीय टोली की एकाग्रता शांत वातावरण l मुझे लिटाया गया ,सभी अपने-अपने कामो में व्यस्त हो गए l मुझे सिर्फ एक बात की चिंता थी कि मेरे दाये हाथ में सुई न लगे या फिर वी .पी .न नापा जाए जो मेरे लिए हमेशा के लिए वर्जित हैं (क्योंकि २००८ में मेरा ब्रेस्ट कैंसर दाया का ओपरेशन हो चूका था ) l सजक चिकित्सकीय टोली के डॉक्टर और सिस्टर दोनों ने इस बात का ख्याल रखा और बाकियों को भी हिदायत दे दी l जिससे मैं और भी निश्चिन्त हो गयी l अब मेरा बाया हाथ ही था जहा से ब्लड लेना -देना सुई लगाना तथा वी पी नापना आदि कर सकते थे l लेकिन कीमोथेरेपी देने के कारण मेरा नस मिलना जरा मुश्किल हो जाता हैं l अब मेरा ओपरेशन यात्रा शुरू होने वाली थी l एनेसथेसिया मेम मेरी नसे तलासने में जुटी थी l तीन बार के कोशिश पश्चात वह कामयाब हो गयी l मुझे एनेस्थेसिया के इंजेक्सन दिया गया कुछ देर बाद मुझे कुछ याद नहीं ,मैं बेहोशी के आगोश में समां चुकी थी l और बाहर मेरे पतिदेव मेरे लिए दुआ कर रहे थे l मेरा ओपरेशन सफलता पूर्वक हो चुका था l मैं वार्ड में अपने बेड पर आ चुकी थी l मुझे जरा-जरा होश आ रहा था …………. सिस्टर की आवाज मेरे कानो में पड़ी ………….मरीज उलटी कर रही हैं ,हाँ मुझे कडू लग रहा था और उलटी आ रही थी ,मैंने एक बाल्टी में उलटी किया …………..वक्त व्यतीत होने लगा जब पूरा होश आया और मेरी आँख खुली तो मैंने अपने पति को मुस्कुराते हुए मुझे निहारते पाया जैसे वह यह कहने की कोशिश कर रहे थे कि तुम जल्दी ठीक हो जाओगी l उन्होंने मुझसे कहा – अभी तुम आराम करो बात मत करो ,फिर वो चले गए l डॉक्टर’स की कितनी जिम्मेदारिया होती हैं सच ओपरेशन के पश्चात भी वो मरीजो का पूरा ख्याल रखते हैं l सिस्टरो का डेडिकेसन सबकुछ मिलाकर मरीज ठीक हो जाता हैं l पतिदेव चले गए ,मुझे बुखार हुआ मगर सिस्टर संध्या मेम ने पूरी डेडिकेसन के साथ मेरी सेवा की l जब तक बुखार नहीं उतरा वह कपडे भिगोकर मुझे पोछती रही ,दर्द का इंजेक्सन देती रही ,ग्लूकोज चढ़ाती रही l शाम तक मेरा बुखार उतर चुका था l शाम को जब डॉक्टर साहब राउण्ड पर आये तो मैंने उनसे पूछा – मेरे ओपरेशन में कितना समय लगा तो उन्होंने कहा – ‘आपके ओपरेशन में दो घंटे लग गए l मैंने बस इतना कहा एक छोटी पथरी के लिए भी इतना लम्बा ओपरेशन ! डॉक्टर साहब चले गए पर मेरे दिमाग में यह सवाल मडराता रहा आखिर क्या कारण रहां होगा जो इतना वक्त लग गया l दुसरी सुबह , जब डॉक्टर साहब फिर से राउण्ड पर आये तो मैंने उनसे फिर पूछा सर ओपरेशन के बारे में बताइए न ! डॉक्टर साहब बहुत अच्छी तरह बात करते हैं उन्होंने कहा पूछिए क्या जानना चाहती हैं आप ? मैंने पूछा छोटी सी पथरी के लिए इतना वक्त कैसे लगा सर ? तो उन्होंने कहा – आपका ओपरेशन अच्छी तरह हो चूका था l पर जब पित्त की थैली बाहर निकाल रहे थे तो सहसा वह फट गया तथा पेट में फ़ैल गया , थोडा हालत पेचीदा हो जाने की वजह से कठिनाई हुई l चूँकि पथरी छोटी थी ,इसीलिए उसे तलासने में कठिनाई हुई l इसलिए वक्त लगा पर सब कुछ ठीक हो गया ,चिंता की कोई बात नहीं हैं l यह सुन मेरे मुह से बस इतना ही निकला था – हाँ ,सर मेरे पास इतने लोगों की दुआ जो थी l मैं शुक्रगुजार हूँ अपनी मातारानी की , मेरे पतिदेव ,मेरे बच्चियों की ,मेरी माँ तथा अपने चाहनेवालो की ,डॉक्टर साहब कर्नल वत्स की ,सिस्टर्स संध्या ,पुष्पा,शिल्पी,विनीता आदि की जिनके कारण एकबार फिर मैं आपके समक्ष खड़ी हूँ , बिलकुल मेरी इस कविता की तरह ………………..
जिंदगी
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जिंदगी की हैं चाहत मुझे फिर क्यों डरूं ? मैं जीवन से, जिवानाराह के तकलीफों से , संकट से , बाधाओं से , जो करती हैं …………… निराश मनको , बन जाता हैं निर्बल भाव और टूटने लगता हैं जीवन ! मुझे जिंदगी से प्यार हैं जीना चाहती हूँ मैं साहस से दुःख-कष्टों को लघु करके धीरज को बढ़ाती हूँ मैं तो स्वयं बौना बन जाता हैं दुःख , मेरे सहनशक्ति के सामने और जीत जाती हैं एकबार फिर जिंदगी ………..l
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