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थैला (मेरी आठ कहानियां)

मेरी कहानियां
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(मेरी आठ कहानियां )की शृंखला में अंतिम आठ कहानी “थैला” आप सभी के समक्ष प्रस्तुत हैं l आपके अनमोल विचार की कामना करती हु l

भंटी किबा लबा नेकी ?(बहन , कुछ लोगी क्या ?) वह आकर बोली थी l में उस वक्त फाइलो में खोयी थी l सर उठाकर देखा तो सामने मरमी ”बा” खड़ी थी l हा मैं उन्हें मरमी बा यानि मरमी दीदी कहकर ही बुलाती थी l अक्सर वह हमारे दफ्तर में आती l अपने परिवार को खुशियाँ देने के लिए उन्हें इस को ढ़ोते हुए कई साल हो गए थे l उसदिन भी वह आज ही की तरह थैला ढोए हमारे दफ्तर में आयी थी l मेरे सहकर्मियों उन्हें घिरे एक -एक चीज निकलवाकर देख रहे थे l वे बिना झिझक सामान दिखा रही थी l वे घरेलू  जरूरतों के सामान के साथ मेखला -चादर ,(असमीया पोशाक),साड़ियाँ ,छतरी भी लायी थी l मेरे सहकर्मी महिलाये चहक -चहक कर चीजे पसंद करने में व्यस्त थी लेकिन मैं अपने कामो में ही मग्न थी पता नहीं मरमी बा को क्या सूझी वह स्वयं मेरे करीब चली आई l ”तुम कुछ नहीं लोगी बहन ?”मरमी ‘बा’ ने मधुर मुस्कान बिखेरकर मुझसे पूछा l मैंने उन्हें देखा कितनी भले घर की महिला लगती थी वे l हा उम्र जरुर बढ गई थी उनकी l साथ ही धुप में चलने के कारन उनके गोरे चेहरे में कालेपन का असर भी दिखाई पड़ने लगा था l फिर भी अपने दुःख को छुपाने के लिए उन्हें मुस्कान बिखेरना ही पड़ता l ”क्या देख रही हो बहन ?” उनकी आवाज से मैं चौक गयी l ”कुछ नहीं,बस सोच रही हूँ आपसे दोस्ती कर लू l ” ”दोस्ती” मजाक क्यों करती हो ? तुम तो मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानती l ” ”इसलिए तो दोस्ती करना चाहती हूँ पता नहीं क्यों आपकी अंदर मुझे अपनी ही छवि दिखाई देती हैं l ” मेरी बात सुनकर मरमी बा ने मुझे देखा l उसदिन मैंने उनका मन रखने के लिए एक छतरी खरीद लिया था l हालाकि बरसात के दिन शुरू होते ही एक नई छतरी खरीदने की इच्छा मुझे कब से थी, मगर प्रति माह के बजट मिलाते-मिलाते ऐसे कई महीने निकल चुके थे l अभी परसों ही हमें तनख्वाह मिली थी l सो मैंने मरमी बा से छतरी खरीद लिया l मरमी ‘बा’ फैन्सी बाजार के होलसेल दुकान से कमीशन बेसिस पर ये सामान लेकर लोगो को बेचती रहती हैं चाहे धुप हो या हो बारिश कोई भी मौसम उनके कामो में बाधक नहीं बनता l वह रोज सुबह घर का कम निपटाकर थैला लिए घाट पर आती है फिर नौका या फेरी दारा ब्रम्हपुत्र नदी पार होकर इसपार पर आती है फिर दुकान से सामान लेकर वह दफ्तर – दफ्तर घुमती है l वह जब भी हमारे दफ्तर आती है मेरी माहिला सह्कर्मिया उनसे कुछ न कुछ जरुर खरीदती है l धीरे -धीरे हम दोनों में दोस्ती होने लगी थी l एक दिन जब वह हमारे दफ्तर में आई तो मैंने कुछ देर के लिए उन्हें अपने पास बैठा लिया l
‘ ऋतू पता नहीं क्यों तुमसे मिलकर मुझे बहुत शांति मिलती हैं l ‘मरमी बा’ कुर्सी पर बैठते हुए बोली l ”सच कह रही हैं ? हाँ ऋतू ,शहर के हर दफ्तर में मैं इस थैला को लिए घुमती हूँ l इतने अपनत्व मैंने किसी में नही देखी हैं l जानती हो मेरे इस थैला में मेरे परिवार की खुशिया समाई हुई है l
”लेकिन आपके मांग का सिंदूर बता रहा है कि आप सुहागन है तो आपके पतिदेव ?”
हाँ है, पर सिर्फ नाम के लिए |
”क्या मतलब ?”
”यह एक लंबी कहानी है बहन l ”
”मुझे नहीं बताएगी ?”
”बताउंगी, पर आज नहीं,कभी फुर्सत में |उसदिन वे और रुकी नहीं चली गयी |
शायद मैंने उनकी दु;खती रगों में हाथ रख दिया था l मुझे पछतावा हुआ l क्या जरुरत थी मुझे उनसे ये सब पूछने की l शायद इसलिए की मुझे उनका दुःख अपना जैसे लगने लगा था l उनके उस थैले की तरह मेरी भी बस इसी नौकरी के ऊपर मेरा संसार बसा हैं l
इसके कई रोज बीत जाने के बाद एकदिन फिर मरमी बा हमारे दफ्तर में आई l सदाबहार मुस्कान के साथ वह मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी l मैंने उसे पास के एक कुर्सी पर बेठने का इशारा किया l काफी थकी मालूम हो रही थी वे l लेकिन इन कष्टों के थपेड़ो को सहना अब तो उनकी आदत बन चुकी थी l
चाय पियोगी मरमी बा ? मैंने पूछा l
”पीने की इच्छा तो है लेकिन पहले एक गिलास पानी मिल जाता तो l मैंने गौर किया बाहर काफी धुप थी l
“हाँ-हाँ ,क्यों नहीं?”
चपरासी ने उन्हें पानी फिर चाय लाकर दिया l चाय की चुश्की लेती हुई वे कहने लगी -“पता नहीं बहन तुमसे मेरा इतना लगाव क्यों होने लगा है ?” ऐसा ही मैं महसूस कर रही थी l वे बोली -‘ऋतु आज मैं बहुत खुश हूँ l लेकिन मुझ बदनसीब को देखो अपना सुख-दुःख किसी से बाँट भी नहीं सकती l मुझे जी में आया कह दू आपका पति लेकिन चुप रही l
“पूछोगी नहीं मैं क्यों खुश हूँ ?”
“क्यों ?”मैंने पुछा l
“आज मेरे बेटा ने विशेष योग्यता के साथ मेट्रिक परीक्षा पास किया हैं l ”
“अच्छा : ये तो वाकेई में ख़ुशी की बात हैं l ” इतनी थकी होने के बावजूद अपनी ख़ुशी मेरे साथ बाँट पाने से उनके चेहरे पर मैंने शान्ति की चमक देखी थी l
“अब बेटे को कहाँ दाखिला दे रही हैं?” मैंने पुछा l
“उसने शहर में पढने की इच्छा जाहिर की हैं l ”
“कॉटन कॉलेज में देती क्यों नहीं ?”
“वही देने की इच्छा हैं मेरी l जन्म जब दिया हैं उसे अच्छा इंसान बनाना भी तो मेरा फर्ज हैं l इस थैले के बल पर मरमी बा की सोच कितना बड़ा हैं l कितनी फिक्रमंद हैं वह अपने बच्चों के लिए l मैंने कहा -“सिर्फ आपका ही फर्ज क्यों मरमी बा ?”
इसलिए कि…………कहते कहते वह रुक गयी l
“रुक क्यों गयी बताइये न ! मैंने जोर देकर कहा l
“ऋतू मेरे पति का मानसिक संतुलन ठीक नहीं हैं l वे गंभीर लहजे में बोली l
“क्या ???”
“हाँ ऋतू ,इसीलिए तो मैं इस थैले को ढो रही हूँ l ” फिर मरमी बा सत्र वर्ष पूर्व में चली गई ………….कम उम्र में ही मेरे पिता ने मेरी शादी फौजी हेमंत बरुवा से कर दी थी l शादी के बाद ज्यादा दिन ससुराल में नहीं रही l हेमंत मुझे अपने साथ ले गए l उसके साथ मैं बहुत खुश थी l असम से दूर अन्य प्रदेश में आकार, भी मुझे उसने थोडा भी परायेपन का एहसास नहीं होने दिया l कई बर्ष खुशी-ख़ुशी बीत गए l हमारी खुशहांल जिंदगी में अब हमारे दो बेटे दिगंत और अनंत ने प्रवेश कर लिया था l हम खुश थे l छुटियो में हम अपने घर आते और चले जाते l चारो और खुशियाँ ही खुशिया थी ,वक्त गुजरते गया l इसबीच उनकी पोस्टिंग दुर्गापुर में हो गई थी l इतना कहकर मरमी बा चुप हो गयी l ”फिर क्या हुआ ?” ”यही “यही से हमारा दुर्भाग्य शुरु हुआ l ” ”क्या मतलब ?” मुझे अच्छी तरह याद है बहन ! हम एनुवेल लिव पर घर आये हुए थे l कुछ दिन के बाद अचानक हेमंत का तबियत ख़राब हो गयी l हमने डाक्टर को दिखाया l लेकिन हेमंत का तबियत सुधरने की बजाये और बिगरती गई l उन्हें बड़े से बड़े डाक्टर को दिखाया गया l उसे पागलो की भांति दौरे पड़ने लगते l डाक्टर हार चूका था लेकिन मैंने हांर नहीं मानी थी l मैंने मंदिरों में मन्नत मांगी प्रार्थना की l बिशवास बहुत बड़ी शक्ति है ऋतू l हेमंत की तबियत कुछ सुधरा, लेकिन उसे बीच -बीच में वही दौरे पड़ने लगे l जो कभी ठीक न हुआ l इसी बीमारी के कारण उसकी नौकरी भी छुट गयी l ”फिर आपने अपने लिए नौकरी का प्रयास नहीं किया ?” कैसे करती बहन, पिता ने टेंथ में रहते ही हेमंत से मेरी शादी कराकर अपना फर्ज पूरा कर लिया था l पढाई कितनी जरुरी है इसका एहसास मुझे उसवक्त पहली बार हुआ जब हेमंत की नौकरी छुटी l धीरे -धीरे हेमंत बिलकुल विछित सा रहने लगा l मेरे तो जैसे दुखो का पहाड़ टूट पड़ा था जीवन में l अच्छा रिश्ता देखकर माँ- बाप अपनी जिमेदारी से मुक्त होना चाहते है l पर यह बहुत गलत है ऋतू लड़की को भी लडको की तरह काबिल बनाना चाहिए ताकि मुसीबत के समय वह अपनी शिक्षा का उचित उपयोग कर सके l मरमी ‘बा’ की बाते सुनकर मैंने कहा -सच कहा आपने l सबकी अपनी पहचान होनी चाहिए l ”फिर क्या हुआ ?” मैंने पुनः पूछा l वह कहने लगी -हम हमेशा के लिए नर्थ गुवाहाटी आ गए l ससुराल में आते ही घर की जिमेदारी सभी मेरे ऊपर आ पड़ी l देवर कॉलेज पड़ रहा था l पड़ने में वह अच्छा था, डाक्टर बनना चाहता था l ”ससुराल में अब कौन -कौन है ?” ससुर जी अब नहीं रहे, सासुमा है, देवर डाक्टर बन गया है l उसकी शादी भी हो चुकी है l पत्नी कांलेज में पढ़ाती है l शादी के बाद दोनों अलग हो गए है l जितनी जमीन थी सासुमा ने दोनों बेटो में बाट दिया l हमारे हिस्से का जमीन देवर को पढाने के लिए बेच देना पड़ा l हमारे पास जो रुपये पैसे जेवर बचे थे वह इनके इलाज और बच्चो के पढाई में खर्च हो गए l धीरे -धीरे हमारी अवस्था ख़राब होने लगी l लोगो के बर्ताव में भी परिवर्तन आने लगे l देवर के डाक्टर बन जाने से उसका रवैया भी बदलने लगा l सासुमा उसकी ही तरफदारी करती l उसदिन तो हद ही हो गयी जब उसने नलिनी को ब्याह कर लाया था l मेरे बच्चे नई चाची के पास जाने की जीद करने लगे l जब वे चाची के पास गए तो उसने दुत्कार कर बाहर कर दिया और मेरा देवर चुपचाप खड़ा यह सब देखता रहा l फिर तो आए दिन घर में खिट-पिट होने लगी l दोनों कमाते थे और हम बेकार l बच्चो के भविष्य को लेकर मैं चिंतित हो उठी l इसलिए मैंने मन ही मन काम करने का फैसला कि मैं अब कुछ न कुछ काम जरुर करुँगी l फिर मैं काम कि तलाश में जुट गयी और एकदिन पड़ोस की माजनी दीदी ने कहा -फैंसी बाजार में कुछ होलसेल दुकाने बेकार महिलाओ को सेल्स का काम दे रहा है l ”क्या तुम करना चाहोगी ?” माजनी दीदी मेरी हालत से अच्छी तरह वाकिफ थी l फ़ौरन मैंने हामी भरदी l इस तरह यह थैला हमारी जीवन का अहम् हिस्सा बन गया l मेरे लिए तो ये सुख -दुःख का साथी है l मेरे हर एक गम और ख़ुशी की साथी l लेकिन बहन मेरा ऐसा काम करते देख घर में बवाल मच गया l देवर ने आकर कहा – भाभी ये मैं क्या सुन रही हूँ l तुम घर-घर जाकर सामान बेचने लगी हो l ”हाँ ,तुमने सही सुना है,तो ?
हमारे मान -सम्मान का तुम्हे जरा भी परवाह नहीं l लोग क्या कहेंगे ?एक डाक्टर की भाभी होकर ,थैला ढो रही है जैसे की तुम भूक से मरी जा रही हो l मेरे जी में आया कह दू आज तुम किसके बलबूते पर डाक्टर बने हो l परन्तु मैं चुप रही l ऊपर से नलिनी भड़क उठी बहुत हो गया रमेन, अब मैं इस घर में एक पल भी नहीं रह सकती l उसे तो बस एक बहाना चाहिए था l किसी सूरत मिले इस कामो को मैं छोड़ना नहीं चाहती थी l क्युकी इस थैले में मेरे पति का इलाज और बच्चो का भविष्य जुड़ा हुआ था l फिर क्या था एक सयुंक्त परिवार टूट गया l मेरा देवर और देवरानी हमसे अलग हो गए l
”और आपकी सासु माँ ?”
कुछ दिन बाद वह भी देवर के पास चली गयी l मैं घर -घर दफ्तर -दफ्तर सामान ढोए अपने कर्तव्य में व्यस्त रहने लगी l मेरे देवर ने इस बीच काफी तरक्की करली है l अब उसने अपने लिए एक आलिशान मकान बनवा लिया है साथ में एक गाड़ी भी ले लिया है l कभी कभार सड़क से गुजरते समय उन लोगो से सामना हो जाता है तो वे या तो मुह फेर लेते है या न पहचानने का ढोंग रचाते हैं l तुम्ही बताओ बहन क्या मेहनत करना बुरी बात है ? मरमी बा यकायक गंभीर हो गयी l
कुछ देर बाद वह पुनः बोली –
और तो और बहन, कितने कटु अनुभवों का सामना भी करना पड़ता है कभी l
कटु अनुभव ?
हाँ बहन, बहुत कठिन है जीवन संघर्ष l अच्छा काम करो तो भी लोग ताना देने से चुकते नहीं एक मजबूर औरत को सताने में लोगो को बहुत मजा आता है l क्योकि वे जानते है कि मेरे लिए बोलने वाला कोई नहीं है l एक ज़माने में क्या थी और अब क्या हो गई हूँ l
निराश न हो मरमी बा l आप तो जीवन दात्री है l इस पृथ्वी को ही देखिये जहाँ हम जन्म लेते है l जो हमें खाने को अनाज देती है l उसे भी इंसान कितना चोट पहुचाती है l फिर भी वह सहनशील और क्षमाशील है l देखना मरमी बा एकदिन आपको इन कष्टों के विनिमय स्वरूप सुख के उपहार रूप में अवश्य लौटाकर पयेंगी l मैंने सहानुभूति प्रकट की l
सब अपना -अपना भाग्य है बहन l इंसान कब कहा कैसे पहुच जाता है कोई बता नहीं सकता l इतना कहकर मरमी ‘बा’ ने थैला उठाया और अन्य दफ्तर की और चल पड़ी …………………………..l

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