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असम के सु-साहित्यियिक मामनी रायसम गोस्वामी नहीं रही ………

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indira goswamiअसम के सु-साहित्यियिक मामनी रायसम गोस्वामी नहीं रही ………

अभी असम वासी महान गायक भूपेन हाजरिका का परलोक गमन के शोक से उभर भी नहीं पाए थे की२९ नवम्बर’२०११ की सुबह ७.४५ बजे सबके प्यारी असम के सु-साहित्यिक मामनी दीदी यानी मामनी रायसम गोस्वामी जी का भी निधन हो गया l इस खबर से एकबार फिर असम में शोक की लहर उमड़ पड़ी l मामनी बाईदेव (असमिया लोग प्यार से बोलते हैं ) १० महीने से बीमार थी और पिछले ८ महीने से वह गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में चिकित्साधीन थी l उनकी निधन की खबर सुनकर साहित्य जगत के लोग शोकाकुल हो गए l उनकी निधन से असमिया साहित्य जगत में अपूरणीय क्षति हुई हैं l सन २००० के ज्ञानपीठ विजेता मामनी रायसम गोस्वामी का जन्म १४ नवम्वर १९४२ को हुआ था l उनका असली नाम इंदिरा गोस्वामी हैं l मगर लेखन में वे मामनी रायसम गोस्वामी के नाम से वह प्रसिद्ध हैं l जन्म से पहले ही ज्योतिषी ने कहा था की उनका पृथ्वी पर आना ठीक नहीं रहेगा , उनका भाग्य ठीक नहीं हैं l उसे काट कर नदी में बहा दो l लेकिन उन्हें इस दुनिया में आना था वह आयी l माँ को हमेशा चिंता खाए रहती की इस लड़की का क्या होगा l इधर-उधर प्रतिकार ढूढ़ती फिरती थी l लेकिन वही लड़की एकदिन बड़ी होकर देश भाषा साहित्य और जाति के लिए गौरव बनी l मामनी जी ऐसी महिला लेखिका थी जिन्होंने कोई भी बात न छुपाते हुए सबके सामने प्रकाश किया था l उन्होंने अपनी रचना द्वारा असमिया साहित्य को न केवल राष्ट्रिय वल्कि अन्तराष्ट्रीय लेवल तक पहचान दिलाई थी l १९५६ में पिता गुवाहाटी आकर बस गए तो तारिणी चौधुरी स्कूल में उनका दाखिला हुआ l वही से उन्होंने हाई स्कूल पास की l अपने पिता से उनका बहुत लगाव था l उस दौरान वह डिप्रेशन में रहती थी यह सोचकर की पिता की मृत्यु होने पर मैं कैसे जी पायेगी l यही सोचकर उन्होंने एकबार आत्महत्या करने की भी कोशिश की थी l अजीब ख्याल उन्हें दुःख देता था l सन १९६४ में जब माधवन रायसम अयंगार उनके जीवन में आए और उनके साथ उनकी शादी हुई तो उनकी जीवन दिशा ही बदल गई , वह पूरी तरह खुश रहने लगी l माधवन की सहायता से उन्होंने मजदुर के ऊपर तीन उपन्यास लिखा l उन्होंने एक इंटरव्यूह में कहा था -” माधवन जी लेखन में काफी प्रेरणा देते थे l ” माधवन जी के साथ वह बहुत खुश थी मगर नियति के आगे भला किसकी चलती हैं एकदिन फिल्ड डयूटी जाते वक्त कार दुर्घटना में उनकी मौत हो जाती हैं l १८ महीने की वैवाहिक जीवन का अंत हो जाता हैं l ये सारी बाते उन्होंने ‘आधा लिखा दस्तावेज ‘ (आत्म कथा)में लिखा हैं l पति के मौत पश्चात वह वापस असम लौटी हैं और गोवालपारा सैनिक स्कूल में शिक्षिका बनी l १९६९ में वृदावन जाकर उन्होंने रामायणी पर रिचर्ष किया था l उन्होंने विधवाओ के जीवन के ऊपर स्वयं अनुभव किया और लिखा कि कैसे वहा के आश्रम में छोटी उम्र के विधवाओ का शोषण होते के देखा था बाद में उन्होंने एक उपन्यास ‘द ब्लू नेकेट ब्रज ‘ भी लिखा l इसके पश्चात् उन्होंने १९७० में दिल्ली यूनिवर्सिटी में लेक्चरार के रूप में ज्वाइन करके विभागीय प्रमुख बनी l दिल्ली पहुंचकर मामनी दीदी प्रसिद्द लोगो के सान्निध्य में आई l दिल्ली विश्वविद्यालय के अन्दर रहकर उन्होंने कई कहानी संग्रह का जन्म दिया था – ‘ह्रदय ‘ बरफर रानी ‘ आदि l गौर तलब हो की महज तरह वर्ष की आयु में ही उनकी पहले कथा संग्रह -‘चिनाकी मरम’ प्रकाशित हुआ था l असमिया साहित्य को समृद्ध बनाने वाली डॉ.मामनी रायसम गोस्वामी का ह्रदय मानवीय गुणों से भरपूर था l १९८२ को साहित्य एकादमी ,२००० को ज्ञानपीठ तथा २००२ को उन्हें पद्मा श्री से नवाजा गया था l हालांकि उन्होंने पद्मश्री लेने से इंकार किया था l लेकिन उनमे लेशमात्र अहंकार छु नहीं पाए थे l वे बहुत दानी थी उन्होंने लाखों रूपये समाज के हितार्थे दिया था l मृत्यु के पहले उन्होंने अपनी अनमोल आखे भी दान कर दी थी l जिसका संरक्षण किया गया हैं l मामनी बाईदेव ने सर्कार और अल्फ़ा नेता के बीच शांति वार्ता हेतु मद्ध्यस्ता करने में अहम् भूमिका निभाई थी l वास्तविक जीवन कोरा होने के बावजूद उनके दिलो में रंग ही रंग भरा हुआ था l तभी तो पति के मृत्यु के बाद भी उन्होंने लाल कपडा पहनना नहीं छोड़ा ,मस्तक पर लाल गोल बिंदी और आखो में सदैब काजल लगाना उनकी पहचान बनी l उन्होंने कहा था -‘मेरी मृत्यु पश्चात मुझे सुहागिन की तरह विदा करना l ‘ उनकी इस इच्छा को परिवार वाले ,चाहने वाले सभी ने स्वीकारते हुए ठीक वैसे ही भावभीनी श्रधांजलि दी जैसा मामनी दीदी चाहती थी l उनकी मृत्यु की खबर ने राज्य भर में शोक की लहर उमड़ पड़ी हैं l उनकी मृत्यु पर राज्यसरकार ने तीन दिन तक राष्ट्रीय शोक की घोषणा किया हैं तथा बुधबार को सभी सरकारी कार्यलय बंध रहेगा l पूरी राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंतेष्टि क्रिया नवग्रह शमशान में किया गया l उनकी नश्वर देह पंचभूत में विलीन होने के साथ -साथ श्रृष्टि का वह कलम हमेशा के लिए थम गया हैं l मगर उनकी साहित्य कृति द्वारा युगों-युगों तक वे लोगो के दिलो में जीवित रहेगी l

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