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अगर सच्ची लगन हो तो कोई काम कठिन नहीं ………….महिला उद्धमी निरुपमा

मेरी कहानियां
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(महिला दिवस के अवसर पर महिला उद्धमी निरुपमा जी के साथ मेरी एक पुरानी अन्तरंग बातचीत  )

इंसान के दिल में अगर चाह हो , लगन हो तो कोई भी काम कठिन नहीं l इसका जीता जागता उदाहरण हैं महिला उधमी

निरुपमाजी l जिनकी लगन ने आज यह सिद्ध कर दिखाया हैं की महिलाए भी बखूबी से उद्योग चला सकती हैं l
बंगाल में जन्मी निरुपमाजी सवभाव से मिलनसार और हंसमुख हैं l जब मैं उनके कलात्मक ढंग से सजे निवास पर पहुंची तो वही सदाबहार मुस्कान के साथ उन्होंने मेरा स्वागत किया l
उनके व्यक्तित्व की झलक का आभास ड्राइंगरूम में प्रवेश करते ही मुझे हो गया था l
कही मैंने डिस्टर्व तो नहीं किया ?”
“नहीं-नहीं, मैं जरा उनके साथ अकाउन्ट्स चेक कर रही थी l वैसे दफ्तर का सारा काम वे ही देखते हैं l
निरुपमा जी के पिता “टी-बोर्ड में कार्यरत थे l विभाजन के बाद जब वह असम आई थी तब वे सिर्फ
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तीन महीने की नन्ही सी गुडिया थी l उनकी शिक्षा-दीक्षा गुवाहाटी में ही हुई l वे शुरू से ही पढाई में अब्बल आती रही हैं l काटन कॉलेज से इकोनिमिक्स में बी.ए.करने के बाद उन्होंने गुवाहाटी विश्वविद्यालय से एम्.ए . की डीग्री हासिल की l
छोटी सी उम्र से ही वह स्वतंत्र प्रकृति की थी l वे नौकरी करना नहीं चाहती थी l चाहती थी स्वतंत्र रूप से कुछ करे l
“मगर हम जिस संस्कार में पल बड़े हुए हैं वहाँ लडकिया बाहर निकलकर काम करे वह भी ‘व्यवसाय’ घरवाले नहीं चाहते ,यह कहती हैं निरुपमाजी l
पढाई समाप्त होने पर उनकी शादी श्री सुनील कुमार बरुआ जी के साथ हो गया l जो हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कॉर्पोरशन में कार्यरत थे l शादी के बाद निरुपमा जी की तकदीर ही बदल गई l कदम-कदम पर साथ देने वाला पति मिला उन्हें l कहने लगी, ‘आज मैं जो कुह भोई हूँ अपने पति के सहयोग से ही हूँ l मैं जो भी विचार विमर्श करती हूँ उनके साथ बैठकर करती हूँ l वे मेरी बात गौर से सुनते हैं, सुझाव ठीक लगने पर अपना फैसला भी देते हैं l
पत्नी के मनोभाव से वाकिफ श्री बरुआ हमेशा निरुपमाजी को उत्साहित करते रहे हैं l फलस्वरूप पहली बार के लिए उन्होंने शिवसागर में में एक बुक स्टाल खोला जो व्यवसाय का पहला चरण था l फिर पति का तबादला गुवाहाटी हो गया l घर में बैठे-बैठे वह बोर होने लगी l पति के सहयोग से उन्होंने फिर एकबार नए सिरे से व्यवसाय में आने का संकल्प किया और यह व्यवसाय था कच्चे सामग्रियों का l उन्होंने एक ‘प्रोजेक्ट रिपोर्ट ‘ तैयार करके ऍफ़.सी.आई. को दे दिया l कुछ ही दिनों बाद उन्हें लघु उद्योग के लिए लोन और जमीं मिल गयी l साथ ही स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से वर्किंग केपिटल भी l फिर भी निरुपमाजी को काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा हैं l क्योंकि उद्योग के लिए सिर्फ कच्चे सामग्री ही नहीं पैकिंग मेतेरिअल्स,मशीने तथा फ़ूड प्रोडक्ट ,लाइसेंस आदि उन्हें कलकत्ता से लाना पड़ा उन्हें l और इस तरह “नीरुज प्रोडक्ट ” का जन्म हो ही गया l
“आपने इस व्यवसाय को ही क्यों चुना? जबकि यह काफी जोखिम भरा हैं ? मेरे इस प्रश्नं पर वह मुस्कुराई फिर बोली -“मैं शुरू से ही सोचती थी नया कुछ करू l घर में भी देखती थी माँ, नानी तरह-तरह के अचार बनाकर पड़ोसियों को खिलाती थी l उसी वक्त से मेरे मन में यह विचार कौंधा था की क्यों न मैं इन चीजो की उद्योग चलाऊ l क्योंकि असम में कई तरह का फल मिलता हैं l उसी को लेकर हम भी अंजाम दे सकते हैं l मगर यह जोखिम भरा कदम था l एक तो कच्चे सामग्रियों का उद्योग ऊपर से महिला का चलाना लोगो ने काफी चर्चा भी की l मगर मैंने तय किया चाहे मैं सफल होऊ या असफर मैं अवश्य इस काम को अंजाम दूंगी l पति का सहयोग और कुह उत्साहित लोगों की मदद से मैंने इस उद्योग की स्थापना की और आज मैं बहुत खुश हूँ l
उन्होंने शुरू में तीन वर्कर्स के मदद से तीन चीजो का उत्पादन किया था l करदै (एक प्रकार का खट्टा फल जिससे शरबत और अचार बनाई जाती हैं ) का स्कवाश ,मिर्ची का अचार (सरसों मिलाकर ) और आम कला अचार l उद्योग की शुरुआत १९८९ के अंत से हुआ मगर १९९० में उन्होंने ट्रायल प्रोडक्ट लंच किया था l
अपने प्रारंभिक दौर का कुछ अनुभव बताये ?मैंने प्रश्न का सिलसिला शुरू किया l इस प्रश्न पर उनका चेहरा गंभीर हो गया था l कुछ पल बाद वह बोली -“शुरुआती दौर मेरे लिए काफी कष्टप्रद रहा l लोगों का रेस्पोंस ठीक से नहीं मिल रहा था l पहली बात तो लोग इसे अपनाने से भी डरते थे l भई घर का बना हैं कही अच्छा नहीं हा तो ऐसी मानसिकता थी लगों में l वैसे भी नई चीजों को अपनाने के लिए थोडा-बहुत संकोच तो हर किसी को होता हैं l हमारे प्रोडक्ट को भी अपनाने में लोगो को काफी समय लगा l मैं निराश नहीं हुई l हालाँकि हमारी कोई पब्लिसिटी भी नहीं हुई थी l धीरे-धीरे माउथ तो माउथ पब्लिसिटी होने लगी और लोगों ने इसे अपनाना शुरू किया l इससे बड़ी ख़ुशी की बात मेरे लिए और क्या हो सकती हैं l


१९९४ में आते-आते मार्केट में “नीरू’ज प्रोडक्ट” की पहचान बन गयी l आज निरुपमा जी के इंडस्ट्री में कई वर्कर काम कर रहे हैं l वे स्वयं उन वर्करसों के साथ मिलकर प्रोडक्शन का काम देखती हैं और उनके पति कार्यलय के कामो को देखते हैं l फिलहाल वह अवकाश प्राप्त हो चुके हैं l निरुपमाजी वर्करों को अपना ही परिवार मानती हैं l तभी तो वे भी उनकी बहुत इज्जत करते हैं l निरुपमा जी एक इंडस्ट्री चलाने के साथ-साथ एक सफल गृहणी भी हैं l दो प्यारे-प्यारे बच्चों की माँ हैं l बड़ा बेटा बीकॉम करने के बाद इंडस्ट्री की देखभाल में हाथ बटाने लगा हैं l घर में सभी एक दुसरे को पूरा ख्याल रखते हैं l एक दुसरे को समझते हैं l

वह सुबह नौ बजे इंडस्ट्री जाती हैं और दोपहर को घर लौट आती हैं l कभी-कभी वह महिलाओं की सभाओं को भी संबोधित करती हैं l

उनकी इंडस्ट्री में कई प्रकार के चीजों का उत्पादन किया जाता हैं l जिनमे प्रमुख हैं – बैर, जलपाई, आम, कटहल,आंवला , बांस ,औ टेंगा (खट्टा फल ) के अचार , कई प्रकार के शर्बते ,टोमेटो ,इमली काहुन्दी सोस और कई प्रकार के गुडा मसाला आदि l इन सब चीजों की उत्पादनों में मशीनों के साथ-साथ हाथों का काम भिओ शामिल हैं l इसमें धैर्य की काफी जरुरत हैं l

आज उत्तर -पूर्व भारत के असम जैसे प्रान्त से निरुपमा जी ने कच्चे सामग्रियों के उत्पादनों का जो कठिन बीड़ा उठाया था आज वह सफल हो चुका हैं l वे कहती हैं -” मैं चाहती हूँ की बेकार बैठी लडकियां , घर बैठी महिलाये खूब काम करे l इस क्षेत्र में आये और असम में जितनी भी चीजे हैं उन चीजों को रचनात्मक कार्य द्वारा अंजाम देकर सफल बने ,बशर्ते उनमे आग्रह और आत्मविश्वास हो साथ ही परिवारों का सहयोग भी l जो मुझे पूर्ण रूप से मिला हैं l

उनके कामों को देखकर ऐसे कई ख़त आते जो उन्हें अपनी प्रेरणा मानती हैं l सचमुच निरुपमा जी हैं ही प्रेरणा के काबिल l मृदुभाषी निरुपमाजी खुले और सुलझी हुई विचारों वाली महिला हैं l वे किरण बेदी के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित रही हैं l

१९९३-९४ में निरुपमाजी को पुरे भारत में सर्वश्रेष्ठ /span>

महिला उद्यमी के रूप में ‘नेशनल एवार्ड से नवाजा गया l जब मैंने पुछा नेशनल एवार्ड मिलने पर कैसा लगा ? प्रत्युत्तर में उनका चेहरा खिल उठा था l उनदिनों की याद ताजा करते हुई कहने लगी -” बहुत अच्छा लगा था l मैं करीब ढाई बजे इंडस्ट्री से लौटकर आई थी l गेट खोलकर मैं अन्दर प्रवेश कर ही रही थी की मेरा बड़ा बेटा दौड़ता हुआ आया और बताया -“माँ तुम्हे नेशनल अवार्ड दिया गया हैं l क्या ?? मैं ख़ुशी से वही उचल पड़ी थी l मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था की मैं वाकी ‘नॅशनल अवार्ड की हकदार बनी हूँ l असम जैसे बेकवार्ड जगह से पुरे भारत में सर्वश्रेष्ठ हो जाउंगी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी l लेकिन यह हकीकत थी l जिसप्रकार हायर सेकेंडरी परीक्षा में मैंने स्टेन किया था और ‘ गृह विज्ञान ‘ पुरे असम में सर्वोच्च अंक लेकर पास हुई थी l तब जो ख़ुशी मुझे हुई थी ठीक वैसी ख़ुशी मुझे नेशनल अवार्ड मिलने पर हुआ था l ख़ुशी के मारे उस दिन मैं और मेरे पति दोनों खाना खा ही नही सके थे ल

मिनिस्ट्री ऑफ एफ्यर्स (सेन्ट्रल गवर्नमेंट ) की तरफ से निरुपमाजी को एक महीने के लिए “अटलांटिक अमेरिकन मैनेजमेंट के कोर्स के लिए उन्हें अमेरिका जाने के लिए चुना गया था l जो १४ जुलाई से शुरू होने वाली थी l मगर उन्होंने अमेरिका न जाने का निर्णय लिया l क्योंकि १६ जुलाई को ‘नेशनल अवार्ड ‘ दिया जाने वाला था और निरुपमा जी उस यादगार शाम को खुद अनुभव करना चाहती थी l उस क्षण को भोगना चाहती थी जो उन्हें अपने देश ने दिया था l अमेरिका जा नहीं पाने का उन्हें कतई दुःख नहीं हैं l कहती हैं “वहा तो कभी भी जाया जा सकता हैं l ”
निरुपमा जी अपने देश और असम को बहुत चाही हैं l विभिन्न चीजों का उत्पादन कर वह अपने देश का नाम रोशन करना चाहती हैं l असम के अलावा भारत के भिन्न -भिन्न प्रान्तों के साथ ही साथ विदेशों में भी वे उत्पादन सामग्री का रप्तानी करना चाहती हैं l दिल्ली में तो ” नीरू’ज प्रोडक्ट ” को लोग जान्ने लगे हैं l
आज नीरू’ज प्रोडक्ट” अपना पैर पूर्णरूप से जमीन पर गाढ चुका हैं l मगर वे कहती हैं -“मुझे काफी कुछ सीखने और जान्ने को बाकी हैं l ८ मार्च’९५ में उन्हें “एग्री एक्सपोर्ट ” दिल्ली में एक मीटिंग एटेंड करने का मौका मिला जहाँ की पैकिंग मेटेरियल्स ,विदेशी मशीने तथा प्रडकशानों को देख वह बहुत प्रभावित रही हैं l
निकट भविष्य में उनकी कई योजनाये सार्थक रूप में सामने आने वाली हैं l जिनमे मलेशिया ,थाईलेंड और सिंगापुर भ्रमण भी शामिल हैं l बातो का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए मैंने उनके शौकों के बारे में जानना चाहा –
“मैंने सुना हैं की आपको फिल्मे देखना और गजले सुनना बेहद पसंद हैं ? कैसी फिल्मे आपको पसंद हैं ?मेरे इस सवाल पर उन्होंने कहा – ” मुझे आर्ट फिल्मे ज्यादा पसंद हैं l कभी-कभी फॅमिली ड्रामा भी देख लेती हैं l
निरुपमाजी को पुस्तके पढने का भी शौक हैं l बंगला साहित्य से विशेष रूप से प्रभावित हैं l
“कौन-कौन सी पुस्तके पढ़ी हैं आपने ?”
“वंकिमचंद्र,शरतचंद्र और तरुण भादुड़ी की रचनाओं ने विशेष प्रभावित किया हैं l
“आपने विश्विख्यात रविन्द्रनाथ ठाकुर का नाम नहीं लिया जो बंगाल का सूर्य हैं ?”
सूर्य की आभा में जन्म लेने वाली निरुपमाजी को इस बात की जुगाली कर गई की रविन्द्र बाबू की चर्चा नहीं करने का कोई औचित्य इसलिए भी नहीं दिख रहा था क्योंकि वे तो आधार हैं ही l
बहरहाल, उन्होंने भारत के प्राय: प्रान्तों में विशेष कर दक्षिण भारत के कई शहरों और तीर्थ स्थानों का दर्शन भी किया हैं l धर्म में उनकी कितनी आस्था हैं ?पूछने पर उन्होंने कहा था “धर्म में आस्था हैं पर अंध विश्वास नहीं l गुरु भक्ति को वे बिशेष दर्जा देती हैं और संस्कारित होने की अदम्य लालसा भी l
अवकाश के क्षणों में वे “फ़ूड प्रोडक्ट की किताबे पढना पसंद करती हैं l कभी-कभी मन उदास हुआ तो वह ‘ऑटो बाई ग्राफी ऑफ़ युगानंद जी ” की किताब पढ़ती हैं l जिसे पढ़कर वह अपने आपको सकून दिलाने की अहर्निश चेष्टा करती हैं l साथ ही कमरे को सजाना भी उनके शौक का एक हिस्सा हैं l वे अपने मिलने जुलने वालों से बहुत प्यार से मिलती हैं l किसी भी तरह का घमंड उन्हें नहीं छु पाया है l तभी तो वह आज एक अच्छी पत्नी प्यारी माँ और सहृदया नारी बन पायी हैं l उनके कुशल व्यबहार ने मुझे भी आकर्षित किये बिना नहीं छोड़ा l
(बातचीत बंद हो गई थी क्योंकि वे किसी काम से अपने किचेन में गई थी l गर्मी काफी थी l छत से लगे पंखे धीरे-धीरे चल रहे थे …….वह थोड़ी ही देर में वापस आई और पंखे को तेजकर शरबत का ग्लास थमाते हुए बोल पढ़ी –
“क्या सोच रही हो ?
-लो शरबत पियो ……
-मीठा हुआ या नहीं????

-जी खूब मीठा ………..l ”

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समाप्त

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