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कर्मफल (लघु कथा )

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कर्मफल (लघु-कथा)

ऑफिस में लोग खुसुर -फुसुर कर रहे थे l ” अरे तुमने सुना ?” “क्या?” चंदा का बेटा का बुरी तरह एक्सिडेंट हो गया l “एक ने कहा ओहो ..हो ..बहुत बुरा हुआ l दुसरे ने कहा ,सब कर्मफल का नतीजा हैं , पानी सर के ऊपर से गुजर चूका था l इंसान को ज्यादा दिखाना नहीं चाहिए l कोई कह रहा था भाई जैसे फसल बोओगे वैसे काटोगे ! अट्ठारह वर्ष अभी पूरी भी नहीं हुई थी ,क्या जरुरत थी उसे मोटर बाईक देने की l काफी देर से यही बहस जारी था ………
एक ने कहा बेचारी चंदा ……….. दूसरों ने कहा वह तुम्हे बेचारी लगती हैं वही तो हैं फसाद की जड़ हैं l शो बाजी से कभी बाज़ नहीं आई ………..दिखावा करके मर रही हैं l अब भुक्तो , चंदा के प्रति उसके मनमे आक्रोश ही आक्रोश था l क्यों न हो चंदा ने अपना इमेज ही ऐसा बना राखी थी l न वचन का पक्का न इमानदारी फिर भी महिला होने के नाते लोग उसे इज्जत देते थे l पर वह उस भावना को समझ नहीं पाती l यह देख महिला सहकर्मी को बुरा लगता परन्तु उसका बुरा कोई नहीं चाहती ,बस भगवन से प्रार्थना करती उसे सत बुद्धि दे l ऑफिस में लोग अब भी बाते कर रहे थे – किसी ने कहा बेटा मरने की धमकी दे रहा था l”तो क्या इस बात पर उसे तुरंत बाइक खरीद कर देना कहाँ की बुद्धिमत्ता हैं ?”दुसरे ने कहा l
यह सब परवरिश का नतीजा हैं समझे l माँ-बाप का फर्ज होता हैं अपने बच्चे को संस्कार देना l क्यों ?
और नहीं तो क्या !हमारे बच्चे एक बार आँख मिलकर तो देखे जरा………….!पहले वाले ने कहा l अब परिणाम देखो न तो जिन्दा हैं न मरा………..कोमा में चला गया ……. बड़ी देर से सुन रहे मिस्टर बख्शी अचानक बोल पड़े जैसे तुम सब दूध के धुले हो l परनिंदा से बाज आओ l कब तक लोगों की निंदा करते रहोगे l जब जानते हो कि सभी अपना-अपना कर्मफल भोगता हैं …………तो फिर ………..फिर सभी चुप ..वातावरण शांत हो चुका था l

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