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मैं उड़ना चाहती हूँ (कविता)

मेरी कहानियां
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मैं उड़ना चाहती हूँ

काश की मेरे भी
पंख लगे होते
तो
मैं भी उडती ,
चिड़ियों की तरह
आजादी से गगन में
और फिर
इस छोर से उस छोर तक (उड़ते हुए)
मैं भाई -चारे का सन्देश
पहुंचाती उन तक
जो
धर्म के नाम पर
आपस में लड़वाकर
विनाश को बुलाता हैं
जो
करते हैं टुकड़े विचारो को
और फैलाते हैं
अराजकताये आपस में
मैं
उन तक
भाई-चारे का सन्देश
पहुंचाना चाहती हूँ ,
बाँध, एक मजबूत
एकता की डोर
जिसे
तोड़ न पाए किसी कट्टरता
या राजनीति का खेल
न बने
अभिशप्त सा जीवन
बस हो वहां
शान्ति का वास ,
हाँ मैं
इसीलिए उड़ना चाहती हूँ
आजादी से गगन में
भाई-चारे का सन्देश बांटते हुए
इस छोर से उस छोर तक ………….l

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