मेघालय यानी बादलों का घर, जी हाँ, इसबार हमने निश्चय किया था कि इस ‘समर वेकेशन’ पर बच्चों को बादलों के प्रदेश मेघालय घुमाने ले चलेंगे l मेघालय उत्तर-पूर्व भारत का एक ऐसा राज्य हैं जो स्त्री प्रधान हैं l यहाँ शादी के बाद लडकिया पतिगृह नहीं जाती वल्कि लड़के को लड़की के घर आकर रहने का रिवाज हैं l इस राज्य को खासी हिल्स के नाम से भी जाना जाता हैं l बचपन में सुना था कुछ लोग शिलांग को मिनी लंडन भी कहते हैं l क्रिश्चियनटी का प्रभाव यहाँ ज्यादा देखने को मिलता हैं l यहाँ खासी जनजाति के लोग रहते हैं l साथ ही यहाँ हिंदुस्तान के कोने-कोने से लोग आकर बसे हुए हैं l कोई नौकरी के सिलसिले में तो कोई व्यवसाय करते हैं l १३ जून ‘२०१२ की सुबह हमने शिलांग के लिए प्रस्थान किया l तेजपुर से शिलांग की दुरी लगभग २५० कि.मी. हैं जबकि गुवाहाटी से लगभग १०० कि.मी. हैं l हमारी गाडी दोनों तरफ के पहाड़ी जंगलों को चीरते हुए आगे बढने लगी l उत्तर-पूर्व भारत की खासियत ही यह हैं कि यहाँ हर मौसम में चारों ओर हरियाली देखने को मिलती हैं l हालांकि यहाँ भी जंगलों की अवैध कटाई को हम नकार नहीं सकते l फिर भी यहाँ की मनोरम प्राकृतिक छटाएं हमें आकार्षित किये वगैर नहीं रहती l कल-कल करती पहाड़ी झरने, बादलों से गुजरते मनोरम दृश्य ,पर्यटकों को आकर्षित किये बिना नहीं रहता l आपको रास्ते भर गाँव से आई पहाड़ी महिलाओं को चाय स्टाल में चाय , सिजिनेबल फल (अनानस ,प्लम ,संतरा आदि ,) सब्जियां (आर्गेनिक) तथा सुपारी पान बेचती नजर आएगी l हमारी गाडी “बड़ा पानी ” डेम से गुजरती हुई शिलांग की और आगे बड़ने लगी l ज्यो-ज्यो गाडी ऊपर चढ़ने लगी त्यों-त्यों गर्मी का आभास कम होने लगा l क्योंकि मेघालय एक पहाड़ी प्रदेश हैं l शिलांग जैसे हिल स्टेशन पर आकर वैसे भी मन प्रफुल्लित हो जाता हैं l बच्चे तो सिक्किम की याद करने लगे ,पिछले साल वहाँ का सैर किया था हमने l दोनों ही पहाड़ी क्षेत्र हैं l मगर दोनों प्रदेशो में बहुत फर्क हैं l करीब साढ़े तीन बजे हम शिलांग के सैनिक आरामगाह में पहुँच गए जहाँ पतिदेव ने पहले से ही कमरा बुक करा रखा था l बादलो का प्रदेश -मेघालय , जिसकी राजधानी हैं शिलांग जो पूर्वी खासी हिल्स का एक जिला हैं l कहा जाता हैं कि शिलांग का नाम एक शक्तिशाली देवता से ली गई हैं l यह समुद्र ताल से १४९१ की उंचाई में स्थित हैं l इस खुबसूरत हिल स्टेशन में पहुँचने के लिए गुवाहाटी से बसे और किराए की गाडिया चलती हैं l इस जिले में घुमने के लिए कई मनोरम जगहे हैं l शिलांग पहुंचकर हम जल्दी से फ्रेश होकर वार्ड लेक के लिए निकल पड़े l “वार्ड लेक ” शहर के बीचो-बीच स्थित ‘सर विलियम वार्ड’ नामक व्यक्ति के नाम से निर्मित झील हैं l वार्ड लेक छोटा मगर साफ सुथडा है l यहाँ नौका विहार की व्यवस्थाये भी हैं l लेक के ऊपर एक छोटी सा पुल हैं जिसके नीचे हँस के झुण्ड का तैरना और सैकड़ो मछलियो का झुण्ड देखते ही बनता है l जैसे स्वर्ण मंदिर के तालाब में मछलियो का झुण्ड दिखता है l पर्यटक उन मछलियों को मुरी (चावल से बनता हैं ) जब बिखेर देता हैं तो मछलिया उसे चुगने टूट पड़ते हैं l यह देख बच्चे तो बहुत खुश हो गए l मेरी बगल से गुजरती एक खासी महिला से जब मैंने कहा – आपके साथ एक तस्वीर खीचना चाहती हूँ तो वह सहर्ष तैयार होकर मेरे सामने खड़ी हो गई l पच्चीस साल बाद मैं शिलांग आई थी l वार्ड लेक में कुछ समय बिताने के बाद हम यहाँ के सबसे बड़ा चर्च कैथेड्रल कैथोलिक चर्च देखने निकल पड़े l शिलांग के अन्दर सफ़र करना हो तो इस बात का ध्यान रखना आवश्यक हैं की यह रूट वन वे हैं या नहीं l क्योंकि अगर एकबार वन वे में घुस गए तो फिर लौट कर आने में काफी घूमना पड़ता हैं l खैर हम आखिर शहर के दिल में बसी कैथेड्रल चर्च में पहुँच ही गए l उसवक्त चर्च के अन्दर प्रार्थना चल रही थी l हम भी चुपचाप बैठकर थोड़ी देर प्रार्थना करने लगे तथा कुछ देर बाद लौट आये l मुझे गोवा के चर्चों की याद हो आई l जब नव लेखक शिविर में भाग लेने हेतु पहुंची थी l इस चर्च की खूबसूरती देखते ही बनती हैं l शाम ढल चुकी थी l हम वापस सैनिक आरामगाह लौट आये ,जहाँ मेरी साहित्यिक मित्र मंजू लामा अपने पतिदेव के साथ हमारा इन्तजार कर रही थी l मंजू लामा नेपाली और हिंदी दोनों भाषाओ में कलम चलाती हैं l उनसे मिलकर ख़ुशी हुई l कुछ देर के वार्तालाप पश्चात वे चली गई l दिन भर के थकान से निजाद पाने के लिए हम भी रात्री भोजन पश्चात सोने चले गए क्योंकि सुबह जल्दी जो उठाना था l शिलांग आये और चेरापूंजी न जाए तो यह यात्रा अधूरी कहलाएगी l अत : दूसरी सुबह यानी १४.५.२०१२ की सुबह ७.३० बजे हम विश्व के सबसे ज्यादा वारिश होने वाली जगह चेरापूंजी के लिए हम रवाना हुए l चेरापूंजी पहुँचने से पहले रास्ते में ही कई दर्शनीय स्थल हैं , हम उसे देखते हुए आगे बढ़ने लगे l शहर से १० की.मी. की दुरी पर १९६५ मीटर ऊंचाई पर शिलांग पिक स्थित हैं l यह स्थान पिकनिक स्पोट के लिए भी मशहूर हैं l यहाँ की उंचाई से शिलांग का नजारा देखकर पर्यटक आनंदित हो उठते हैं l क्यों न हो व्यस्त जिंदगी से कुछ पल प्रकृति के साथ बिता पाने किसे ख़ुशी नहीं होगी l हम कुछ देर उन नजारों को निहारते रहे जो हमारे मन को ही नहीं आँखों को भी सुकून पहुंचा रही थी l हमारा अगला पड़ाव एलिफेंटा फाल था जो शहर से १२ की.मी. की दुरी पर था l कहा जाता हैं की एलिफेंटा फल की आकार हाथी के मस्तक जैसा दिखाई देता था , मगर कहा जाता हैं एक बार भूकंप के जोर झटके के कारण अपना आकार खो दिया ,परन्तु फिर भी खुबसूरत नज़ारे आज भी पर्यटकों को आकर्षित किये बिना नहीं रहता l चट्टानों से गिरती सफ़ेद झरने जो कल-कल शब्दों के साथ शांत वातावरण में सुकून देता हैं l एलीफेंटा फल में खरीदारी भी कर सकते हैं , ट्रेडीसनल ड्रेस पहन कर फोटो खिंचवा ने की व्यवस्था भी हैं l इसके अलावा कैप्टेन विलियाम् संगमा राजा संग्रहालय, स्वदेशी संस्कृती के लिए ड़ोंन बोस्को सेंटर ,गोल्फ कोर्स आदि जगहों को देख सकते हैं l हाँ यदि आप पेड़-पौधो को पसंद हैं तो लेडी हैदरी पार्क जाना न भूले ,यहाँ की खुबसूरत फूलो और पौधे आपको आकर्षित किये बिना नहीं रहती l वैसे फूलों को देखने के लिए उपयुक्त समय हैं अप्रैल और अक्टूबर l हमारी गाडी अब चेरापूंजी की तरफ भाग रही थी l मनोरम पहाड़ी छटा देखते ही बन रहा था l पर्यटकों की आवा-जाहि लगी हुई थी l सच कहा जाए तो सही मायनों में चेरापूंजी बादलो का प्रदेश हैं l हमारी गाडी बादलों को चीरती हुई आगे बढ़ रही थी l घाटी में कुछ जगह धुंध से भरा था तो कुछ जगह जुरासिक फिल्म की याद दिलाती घने जंगलों से घिरी हरा-भरा दृश्य आँखों को सुकून पहुंचा रही थी l हम रुक-रुक कर दृश्यों का आनंद लेते हुए अपने कैमरों में सुखद क्षणों को कैद करते हिये आगे बढ़ते गए l चेरापूंजी ४,५०० फिट की ऊंचाई पर स्थित हैं l चेरापूंजी को विश्व में सबसे ज्यादा वारिश रिकार्ड के लिए जाना जाता हैं l चेरापूंजी की वार्षिक औसत वर्षा १०,८७१ मिली मीटर हैं l यहाँ मई से सितम्बर तक भारी वर्षा रहती हैं l तत्पशात अक्टूबर से वहाँ का मौसम अच्छा हो जाता हैं l उसवक्त पर्यटक वहा पहुंचकर प्रकृति का आनंद उठा सकते हैं l वाकयी प्रकृति की खूबसूरती वही पहुँचकर कर सकते हैं l हम ज्यो-ज्यों चेरापूंजी पहुँचने लगे त्यों-त्यों तेज वारिश होने लगी l फलस्वरूप हम घाटी के कुछ खुबसूरत दृश्यों का अवलोकन नहीं कर पाए l बारिश की वजह से मवस्मई गुफा तक पहुंचकर भी हम गुफा के अन्दर नहीं जा पाए क्योंकि गुफा के अन्दर पानी भरा था l खैर हम फिर भी बहुत खुश थे इन वादियों में शांति से कुछ पल बिता पाने के लिए l इसतरह शिलांग ट्रिप की खुबसूरत यादो को दिल में संजोये हम चेरापूंजी से सीधे तेजपुर के लिए रवाना हो गए l
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