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क्या बुजुर्गों की जिम्मेदारी हमारी नहीं ???????????

मेरी कहानियां
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क्या बुजुर्गों की  जिम्मेदारी हमारी  नहीं ???????????

जब बच्चा का जन्म होता हैं तो माता-पिता उस बच्चे के परवरिश में दिन रात जुट जाते हैं l नए मेहमान के आगमन में उसे जरा सी भी तकलीफ न हो इस बात का पूरा ख्याल रहता हैं उन्हें l जन्म से लेकर बच्चे की देखभाल में माँ इस कदर डूब जाती हैं कि उसके लाल को कोई तकलीफ न होने पाए l उसकी हर जरुरते पूरा करने के लिए वह हरदम तत्पर रहती हैं l बच्चे को कब भूख लगती हैं, कब वह पिशाब करता हैं और कब पोटी , उसकी क्या जरुरत हैं ?साए की तरह पुरे के पुरे समय माँ लगी रहती हैं l दिन -ब – दिन बच्चा बढ़ा होने लगता हैं ……..और एक दिन वही बच्चा बढ़ा हो जाता हैं और माँ बूढी l अब बच्चा स्वविलाम्ब हो जाता हैं वह सबकुछ कर सकता हैं परन्तु वह माँ की उस ममता को पता नहीं क्यों भूलने लगता हैं l अब उसके पास माँ के लिए समय भी नहीं हैं कि बैठकर उनके पास कुछ बाते करे ……..
धीरे -धीरे बुजुर्ग माँ को भूल सा जाता हैं वह …………….ऐसे ही एक माँ मिली थी मुझे कुछ दिन पहले दिल्ली जाते समय ट्रेन में ………….उम्र करीब ७० की रही होगी l समय दोपहर का था l मैं लंच करने में व्यस्त थी l हमारे कम्पार्टमेंट में एक महिला की आवाज गूंजी – ” शिखर लो बेटा शिखर ……”मैंने मुढ़कर पीछे देखा तो चौक गई ……अरे ये तो एक बुजुर्ग महिला हैं!!! l मैंने उन्हें ध्यान से देखा ………साधारण कद काठी की थी वह l उनकी बाई हाथ में एक लखुटी थी और
दुसरे हाथ में कुछ शिखर की पैकेटे……..लटकाई हुई थी .l इस उम्र में भी वह स्वयं काम करके गुजारा कर रही थी l उनकी इस जज्वे पर मैं नतमस्तक हो गई …………….मेरे मुह से अचानक निकला – “अम्मा मुझे भी दस रूपये की शिखर दीजिये “, मेरा ऐसे कहते ही वह खुश होकर तुरंत १० पैकेट शिखर मेरी तरफ बढ़ाते हुए उन्होंने कहा -” लो बेटा ” l मैंने उनसे शिखर ले लिया और दस का नोट उन्हें दे दी l शिखर तो मैंने उनसे खरीद लिया पर मैं शिखर कभी नहीं खाती हूँ l जो इंसान इस उम्र में हाथ फैलाए वगैर मेहनत से जीविका अर्जित कर रही थी वह कितनी स्वाभिमानी और आदरणीय होगी l मगर इस उम्र में इस तरह मेहनत करने की क्या वजह रही होगी ,मेरे मनमे अनेक सवाल कौंध भी रहे थे l अम्मा हमारे कम्पार्टमेंट से निकल कर अगले कम्पार्टमेंट में चली गई l यकायक अम्मा की चिल्लाने की आवाज आई – “खबरदार मुझसे बेटे की बात मत कहो ………….! किसी ने उनकी दुखती रग पर हाथ रख दी थी शायद….. l अम्मा वहां ज्यादा देर तक नहीं रुकी l नाराज होती हुई वह वहाँ से वापस लौट गईं l किसी ने उनके नालायक बेटे के बारे में पुछ लिया था l वह नाराज और उदास होकर वहा से चली गई …………और मैं सोचती रह गई ऐसी स्वाभिमानी मेहनती बुजुर्गो की इज्जत करना तो दूर कुछ लोग जाने -अनजाने में उन्हें ठेस पहुचाने से भी नहीं चुगते l कारण चाहे कुछ भी हो ……..पर क्या बुजुर्गो की जिम्मेदारी हामारी नहीं ??? हम मानते हैं आज के व्यस्त जिंदगी में उनके लिए समय निकाल पाना मुश्किल हैं पर क्या थोडा वक्त हम उन्हें दे नहीं सकते ?जिनकी अंगुली पकड़ कर कभी हमने चलना सीखा था l चाहती तो इस बुजुर्ग महिला अपना रोना रोकर लोगों से मदद के लिए हाथ फैला सकती थी मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया l मेहनत बेचकर जीवन निर्वाह कर रही हैं l

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