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वह भिखारी (लघुकथा)

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वह भिखारी (लघुकथा)

दो मित्र को फिल्मे देखने का बहुत शौक था l एक सर्द शाम को दोनों ने फिल्म देखने का मन बनाया l दोनों तैयार होकर जैसे ही निकलने वाले थे l दरवाजे पर किसी ने दस्तक दिया l “इसवक्त कौन हो सकता हैं ?” राजन ने संदेह व्यक्त किया l “कोई भी हो चलो फिल्म का टाइम हो रहा हैं l ” कहते हुए शेखर ने दरवाजा खोला तो सामने एक अधनंगा ,कमजोर भिखारी खडा था l दोनों को देखते ही बड़ी आशा के साथ उसने थरथराती आवाज में कहा – “बेटा बहुत ठण्ड लग रही हैं ,मुझ गरीब को कुछ कपडे दे दो l “

“बाबा अभी नहीं ,हम लोग जरुरी काम से बाहर जा रहे हैं l बाद में आना, हम कपडे, खाना सबकुछ दे देंगे l ” शेखर ने कहा और बेपरवाह होते हुए आगे बढ़ गया l न चाहते हुए भी राजन को शेखर के साथ जाना पड़ा l फिल्म अच्छी थी l दोनों मित्र फिल्म देखकर घर लौट आया l शाम की वाक्यात को दोनों बिलकुल भूल चुका था l मष्तिष्क पर फिल्म छाया हुआ था l दोनों खा पीकर सोने की तैयारी कर ही रहा था की बाहर लोगों की कोलाहल से दोनों के कान खड़े हो गए शेखर ने झट से खिड़की से बाहर झांककर देखा l यह क्या? बाहर इतनी भीड़ !!! क्या बात हैं ? वह आशंकित हो उठा l वह राजन से बोला ” चल बाहर जाकर देखते हैं कहकर वह शेखर राजन का इंतज़ार किये वगैर तेजी से बाहर निकल गया l
भीड़ को चीरते हुए वह आगे बढ़ने लगा l फिर अचानक वह ठिठक कर रुक गया l वहाँ एक लाश पड़ी थी l उसकी नजर लाश पर जाकर ठहर गई l अरे !!! यह तो वही भिखारी था l भीड़ से किसी की आवाज तीर की भाँती ह्रदय को भेद करता हुआ उसकी कानों से टकराई – “बेचारा बदनसीब था ,आखिर ठण्ड बर्दास्त नहीं कर पाया और चल बसा l “

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