Menu
blogid : 282 postid : 1603

कटुसत्य (नेपाली अनुदित कथा )मूल:श्री डिल्लीराम खनाल अनुवाद रीता सिंह’सर्जना’

मेरी कहानियां
मेरी कहानियां
  • 215 Posts
  • 1846 Comments

कटुसत्य (नेपाली अनुदित कथा )मूल:श्री डिल्लीराम खनाल

धनञ्जय शर्मा – इस अंचल का एक प्रतिष्ठित तथा वरिष्ठ साहित्यकार का नाम है l इधर -उधर दोनों तरफ उन्हें न जान्ने वाले या फिर उनकी कृति न पढने वाला कोई नहीं हैं l पांच दशक से वह साहित्य सृजना में व्रती हैं l भाष-साहित्य संस्कृति के प्रति समर्पित धनञ्जय शर्मा को सभी श्रद्धा करते हैं l आदर के साथ उनका नाम लेते हैं l बहुमुखी प्रतिभा के धनि शर्माजी ने प्राय: सभी विधाओं पर कलम चलाया हैं l इसके साथ-साथ उसी प्रकार का दक्षता भी दिखाया हैं, सफल हुए हैं l भाषा साहित्य के साथ-साथ वे एक कुशल संगठक भी हैं l उनके नेत्रितत्व में भाषा आन्दोलन के लिए हजारों लोग निकलकर आये थे l अपना घर-संसार , पत्नी,बच्चे सभी को दूर रखकर वे अपने लक्ष्य की और अग्रसर थे -यह बात सभी जानते हैं l
उनकी बीमारी से आक्रांत होने की खबर काफी दिन हो चुके हैं l कुच्दीन पूर्व उन्हें अस्पताल ले जाकर बड़ा अपरेशन करवाकर घर लाने की खबर से उन्हें देखने आने की ताँता लगा हुआ हैं l सभी लोग उनकी आरोग्य की कामना कर रहे हैं l और वे लेटे-लेटे सभी का शुभेच्छा और आशीर्वाद ले रहे हैं l
धनञ्जय शर्मा रिश्ते में मेरे चाचाजी हैं l इसीलिए मुझे उन्हें नजदीक से देखने का मौका मिला हैं l जबकि मैं विगत बीस वर्षों से नौकरी के सिलसिले में घर से दूर रहा हूँ l फिर भी मैं उनके साहित्यिक और सामाजिक सभी गतिविधियों से वाकिफ हूँ l
जब मैं पहुंचा उस्वक्ट चाचाजी अस्पताल में थे l चाची जी के सिवा उनके पास कोई नहीं था l कोई नहीं पहुँचने से शायद उन्हें ख़राब लगता हो l मेरे पहुँचने ने उन्हें लगा जैसे कोई सम्मान मिल गया हो l उनका चेहरा खिल उठा l चाची जी ने अपने साडी की आँचल अपनी आंसू पोछी l
अस्पताल के एक साधारण से बेड पर नेपाली साहित्य जगत के एक प्रतिष्ठित साहित्यकार बेसहारा ,लावारिस की भाँती पड़ा हुआ था l हे भगवान् ! उनके माथे पर बिखरकर चेहरे को ढका हुआ था l गाल पर भी दाड़ी बड़ी हुई थी l आँखे अन्दर की ओर धंस चुकने के बावजूद चमक रहा था l धीमी आवाज में उन्होंने मुझ से कहा-“बैठो-बैठो ” कहते हुए अपने ही नजदीक बैठने का इशारा किया l
मुझे बहुत दुःख हुआ l एक जमाने में इस जगह की ही नहीं, समग्र नेपाली जगत के , विबिन्न साहित्यिक कार्यक्रम में आकर्षण का अन्यतम केंद्र बिंदु बन्ने पहुंचें सुवक्ता , सु-साहित्यकार धनञ्जय चाचा जी की ऐसी दुर्दशा ? धिक्कार हैं ! चाचाजी जिंदगी भर अपने घर-परिवार, बच्चे संपत्ति यहाँ तक की नौकरी सबकुछ छोड़कर , भाषा, साहित्य,संस्कृति और समाज का उद्धार और विकाश के लिए दौड़ते रहे l चाचाजी के इस पागलपन के कारण उच्चशिक्षित होते हुए भी उस्वक्ट आसानी से मिली नौकरी करने से भी इनकार कर दिया l सिर्फ अपने पैत्रिक संपत्ति, कुछ खेत के जमीन,,छोटा सा गोशाला के आय से निर्वाह हो ही जाएगा-ज्यादा संपत्ति क्यों चाहिए l ” चाची जी ने नौकरी के लिए बहुत समझाया उन्हें परन्तु उन्होंने यह कहकर उन्हें चुप करा दिया की नौकरी करके साहित्य और समाज सेवा करने में असुविधा होगी l उनके सिमित आय से चाची जी जैसे -तैसे घर चलाती रही l बच्चे की पढ़ाई के लिए, घर खर्च के लिए , चाचाजी के आने -जाने का खर्च; पुस्तक, पत्र-पत्रिका खरीदने का खर्च पूरा करते चाची जी को मुश्किल पड़ता l दूसरों को करने दिए खेतों से मिले अनाज और गोशाला की आय दिन-ब-दिन महंगाई की मार से कम पड़ने लगा, खर्चा पूरा न हो पाता l ऐसे पति के साथ चाचीजी द्वारा इतनी खूबसूरती से घर चलते देख सभी लोग आश्चर्य चकित रह जाते थे l
एक बार एक ऐसी बड़ी घटना हुई जिससे चाचाजी जैसे घर- संसार के प्रति उदासीन और निर्विकार इंसान को भी हिला दिया l चाचाजी की एकमात्र बेटी रूपा बहुत बीमार हुई l बुखार,जनडीश के कारण उसने खाना-पीना छोड़ दिया था और बिलकुल पिली पड़ गई थी l कुछदिन अस्पताल में में रखकर घर पर ही उसका उपचार किया जाने लगा l उस्वक्ट “करों या मारों” के संकल्प लेने वाले मृत्यु वाहिनी के भाषा सेनानिओयों को भला कौन रोककर रख सकता था? ऊपर से हमारे चाचाजी नेत्रितत्व में थे l उनको दिल्ली जाना ही पड़ा l चाचाजी चले गए l चाचा जी के चले जाने के दो दिन बाद रूपा फिर सीरियस हो गई l उसे अस्पताल ले जाया गया l लेकिन, अफ़सोस रूपा को बचा न जा सका l आज की तरह उसवक्त संचार व्यवस्था नहीं थी l चाचाजी को खबर भी न दे सके l इस घटना से चची जी के जीवन में बड़ा परिवर्तन हुआ l वह एकटक देखती रहती ,अकेले-अकेले बढ़बढाने लगती l दो बेटे और एक सुन्दर सी बेटी रूपा सहित चाचा -चाची के संसार रूपी सुन्दर बगीचे की सबसे अच्छा फूल ही कालरुपी आंधी ने तोड़ दिया l रूपा की तेरहवी भी ख़त्म हो गया परन्तु चाचा जी भाषा समिति के भूख हड़ताल के कार्यक्रम ख़त्म करके ही घर लौटे l चाची और बेटों ने रो-रोकर घर घर को सर पे उठा लिया l पास पडोसी, नाते रिश्तेदार सभी रोने लगे l मगर चाचाजी धीर स्थिर, निर्विकार होकर मूर्तिवत खड़े रहे l फिर एकायक उन्होंने चाची और दोनों बेटों को बाँहों में भरा फिर रोने लगे ,रोते ही रहे बहुत देर तक l हम सभी देखते ही रह गए l
इसके पश्चात , एकदिन नेपाली भाषा को मान्यता मिल गई l विभिन्न जगह पर बहुत सारे सभा समिति,जुलुस , भाषा महोत्सव हुए l चाचाजी की व्यस्तता और बढ़ गई l भाषा मान्यता की ख़ुशी में आयोजित हुए समारोहों में भाग लेने विभिन्न जगह पर चाचाजी को कही प्रमुख अतिथि, कही निर्दिष्ट वक्ता, कही उत्घाटक, तो कही संचालक के रूप में आमंत्रित और अभिनन्दन किये गए l चाचाजी का दायित्व बढ़ गया l भाषा मान्यता के बाद साहित्य सर्जना और विकाश के काम में जुटना पड़ेगा ऐसा साहित्यिक संगठन ने निर्णय लिया l चाचाजी को भी इतने वर्षों से पत्र-पत्रिका में प्रकाशित कराने का आग्रह आने लगा विभिन्न व्यक्ति और संगठनों से चाचाजी ने भी अपनी कृतियाँ तैयार किया l लेकिन भाषा को मान्यता मिलने से सबकुछ हो जाएगा कहना हमारे समाज में नेपाली पुस्तक के प्रकाशक मिलना पहाड़ के ऊपर कछुआ का अंडा मिलने जैसे बात हैं इस जगह में l इसीलिए चाचाजी ने चाचीजी की बात न मान कर अपने पिता -दादाजी के समय के गोशाला बेच कर भी स्वयं ही ६ कृतियाँ प्रकाशित कराये l
लेकिन उन पुस्तकों खरीदकर कौन पढ़ेगा? विभिन्न सभा समारोह अधिवेशन में उन किताबों को लेकर चाचाजी जाने लगे l विभिन्न जगह पर अपने परिचित व्यक्तियों को , भाषा संग्राम के सहकर्मियों वरिष्ठ साहित्यकारों, साहित्य प्रेमियों को सम्मान पूर्वक एक-एक प्रति देते गए l पढ़कर पत्र-पत्रिकाओं कुछ लिख देने का आग्रह भी किया l कुछ प्रति बिक्री कर देने के लिए सहयोग भी माँगा l मगर अफ़सोस ,बिक्री वितरण सहयोग तो दूर की बात हैं ,यूँ ही मिले इन अन्मोल्रितियों को बड़े-बड़े साहित्यकारों ,साहित्यप्रेमी जैसे लोग भी नहीं पढ़ते हैं चाचाजी को अब पता चला l इतने वर्षों में भी जब कही से कही भी उन पुस्तकों का कोई मूल्यांकन आज तक नहीं हुआ न ही किसी ने समीक्षा की न ही समालोचना l ऐसे अध्यन की विमुखता , इतने बौधिक दरिद्रता ,इतनी हीन मन्यता को देखकर धनञ्जय चाचाजी आश्चर्य चकित रह जाते हैं l इतने वर्षों तक की उनके साहित्य सेवा का सही मूल्यांकन ,सही स्वीकृति तक नहीं मिला चाचाजी को l भिन्न-भिन्न समय में हम लोग चाचाजी साहित्यिक चर्चा परिचर्चा करते रहते हैं l हम उनके विभिन्न समय के अनुभवों को सुनते हैं l एकबार चाचाजी साहित्यिक कार्यक्रम में भाग लेने जाते वक्त एक साहित्यिक सांस्कृतिक परिवेश वाले शिक्षित परिवार के घर में पहुंचे l घर के दोनों मेजबान स्वयं शिक्षित और साहित्यनुरागी होने के कारण बचपन से ही अपने दोनों बच्चों को साहित्य अध्यन और लेखन की और आदत डाल दिए l उन्होंने अपने बच्चों की प्रकाशित कृति चाचाजी को दिखाया l चाचाजी ने देखा उनकी एक कथा को मेजबान की बेटी ने अपने संकलन में स्वयं का नाम से छापा हैं जो स्थानीय महाविद्यालय की छात्रा हैं l चाचाजी ने यह बात जब मेजबान दंपत्ति को बताया तो उसवक्त उनका चेहरा काला पड़ गया l उन्होहे तुरंत ही इसका संशोधन करने का आग्रह किया l उन्होंने अह सभी प्रकाशित कृति लौटाने और संशोधन करने का वचन भी चाचाजी को दिया l मगर बाद में क्या हुआ चाचाजी को इसका पता न चला l सुन रहा हूँ , चाचाजी की कथा चोरी करने अपने नाम छपवाने वाली शिक्षक की बेटी आजकल बहुत बड़ी लेखिका हैं आश्चर्य !
चाचाजी ऐसे भी साहित्यकारों से मिले जो दो -चार पत्र-पत्रिकाओं में छिटपुट रचना छपवाकर अपने आपको बड़ा साहित्यकार समझते हैं l वे दूसरों की किताब पत्रिका खरीदकर नहीं पढ़ते l उल्टा उन्हें निशुक्ल भेट चाहिए होता हैं l वैसे भी चाचा जी ने अपने पैतृक संपत्ति ख़त्म करके भी उन्होंने उनकी कृति छपवाए और लोगों को किताब भेंट में दिए l लेकिन उन साहित्यिकों ने इसे पढ़ा या नहीं बेचारे चाचाजी जान न पाए l इसी समाज में ऐसे धनाढ्य बुजुर्ग व्यक्ति भी मिले चाचाजी को जो अपने धन के बल पर साल में दो-तीन पुस्तक प्रकाशित करवाता रहता हैं l उन कृति को पढने से ऐसा लगता हैं की कोई आठ- दस साल के बच्चे ने बाल कथा लिखा हैं , बाल कविता जैसे लगता हैं l लेकिन उन्ही व्यक्तियों को साहित्यिक पुरस्कार मिलता हैं l साहित्यिक पेंशन लेने के होड़ में साहित्य सेवा की बायोडाटा बनाकर वही लोग दौड़ते रह्तेद हैं – बहुत ही बेशर्म होकर l
धनञ्जय चाचाजी जी के इन लम्बे अर्ध शताब्दी तक के साहित्यिक सफ़र में उनके भाषा , साहित्य का मूल्यांकन अथवा स्वीकृति आजतक भी नहीं मिली हैं l साहित्य जगत के बड़े-बड़े दिग्गज ,रथी, महारथियों के संग कंधे- से कंधे मिलाकर अपने घर परिवार से दूर दिन-रात भाषा-जननी की सेवा करने वाले आज उन्हें इस वार्धक्य्ता के समय में समाज, संस्था अथवा सरकार से किसी प्रकार की स्वीकृति की बात तो दूर – सान्तवना के दो शब्द भी नहीं मिला उन्हें l दरअसल में उनकी प्रतिभा, सांगठनिक नेत्रित्व ‘ उनकी कार्य कुशलता को कुछ बुद्धि जीवी, साहित्यिक अध्यापको ने ऐसे इस्तमाल किया जैसे खौलाकर फेके गए चायपत्ती हो l अपना कोई मौलिकता न होने वाले उन तथा कथित बड़े-बड़े लोग अन्दर ही अन्दर चाचाजी से जलते थे l पर आज वही लोग भाषा साहित्य के पुजारियों को दूर खदेड़ने लगा हैं l उनलोगों की सेवा की स्वीकृति देना भी नहीं चाहते l शायद इसीलिए कुछ वर्षों से इधर इस जगह से क्रमश प्रकाशित हो रहे मानक ग्रन्थ पाठ्य पुस्तके और प्रतिनिधित्व मूलक साहित्यिक ग्रंथों के किसी भी विधा पर चाचाजी जैस बहुमुखी और बहुआयामी साहित्यकारों के रचनाओं को कोई स्थान नहीं मिला l वल्कि स्थान पाने वाले उन तथाकथित चाटुकार साहित्यकार के चापलूसी से चमकाकर सब कुछ वह हासिल कर लेता हैं l बड़े-बड़े सभा समारोह में ढोल बजा -बजाकर अपना प्रचार और प्रसार याचक रूप से करते हैं l परन्तु धनञ्जय चाचा जी जैसे प्रचार विमुख मौन भाषा जननी के सेवकों को लेकिन उत्कृष्ट साहित्य सर्जना करके भी प्रचार प्रसार के आभाव में हमेशा ओझल रहना पड़ता हैं l इस तरह का चाल ढाल देख कर चाचाजी आश्चर्य चकित रह जातें हैं – किसी को गोद में बिठाना तो किसी को दूर झिटक देना आजकल के समाज में हुए इस तरह के रवैये देखकर उन्हें कतई पसंद नहीं आती l मगर वह क्या कर सकते हैं l जब तक जी में जान थी सेवा किया l अब तो बीमारी ठीक हो जाने पर भी शायद ही वह उठकर चल सकेंगे l और फिर एकदिन वे चल बसे तो! उनके निधन पर साहित्य जगत ही अनाथ हो गए कहकर आंसू बहाने वाले निकलेंगे l उनके नाम के स्मृति ग्रन्थ निकलने पर काफी लोग उनके गुण किर्न्तन करते हुए लम्बी-लम्बी कविताएं लिखेंगे l परन्तु आज उनके घर परिवार वालों ने उनके पास रहे अंतिम पैतृक संपत्ति गिरवी रखकर उनकी इलाज कर रहे हैं l इस बात की खबर कौन लेगा ?
अस्पताल में चाचाजी के संग मैं दो महिना रहा l वहां से लौटकर फुर्सद के क्षण विस्तर पर लेटते समय चाचाजी ने मेरे साथ उनके जीवन के कडवी कटुसत्य बाते विस्तार पूर्वक मुझसे बाटे थे या कहू उन्होंने अपने पर बीती एक प्रकार के दर्दीले घाव के गाथ को ही खोलकर मेरे सामने रख दिया था l बहुत देर तक बोलने के कारण शायद वह थक चुके थे l वह नींद की आगोश में समा गए और मैं उन्हें निश्चिन्त होकर सोने देकर बाहर निकल जाता हूँ – खुली हवा में …………………………….

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh