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हिंदी बाजार की भाषा हैं, गर्व की बात नहीं या हिंदी गरीबो, अनपढो की भाषा बनकर रह गई हैं क्या कहना हैं आपका ? – contest

मेरी कहानियां
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हिंदी बाजार की भाषा हैं, गर्व की बात नहीं ? या हिंदी गरीबो, अनपढो की भाषा बनकर रह गई हैं क्या कहना हैं आपका ? -contest

उक्त शीर्षक अनुसार मेरा मानना यह हैं की हिंदी हमारे भारत वर्ष की सबसे मीठी भाषा हैं l क्योंकि २८ राज्यों में कमोवेश बोली जाने वाली हिंदी भाषा सबसे ज्यादा चर्चित और पसंदीदा भाषा हैं l तभी तो स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में राष्ट्रीय पिता महात्मा गांधी जी ने बखूबी समझ लिया था कि यह जन-जन की भाषा हैं l इसी भाषा के जरिये उन्होंने विशाल भारत के जन समुदाय को एक सूत्र में बाँधने को सक्षम हुए थे l वे समझ गए थे कि एक मात्र हिंदी ही एक ऐसी भाषा हैं जिसे आसानी से लोग समझ सकते हैं और बोल भी सकते हैं l गाँधी जी जिस सभा में जाते थे उस सभा को वे हिंदी में ही संबोधित किया करते थे l सर्वेक्षण के अनुसार आज विश्व में हिंदी भाषा का स्थान पांचवे नम्बर पर हैं ,और अपने देश के आलावा २० अन्य देशो में हिंदी का प्रचलन हैं l भारतीय हिंदी सिनेमा ने इसकी व्यापक रूप में ख्याति प्राप्त किया हैं तथा विश्व बाजार में अपना मुनाफा अच्छी तरह कमाया हैं l

मैं हिन्दुस्तान के कोने -कोने में जहाँ भी गई वहा के लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा के आलावा हिंदी को बोलते समझते पाया l चाहे वो दक्षिण हो या पश्चिम , उत्तर हो या पूर्वोत्तर l हमारे पूर्वोत्तर के लोगो के उच्चारण में जरुर अशुद्धिय मिलेगी मगर टूटी -फूटी ही सही परन्तु हिंदी बोलते जरुर नजर आएगा l चाहे बाजार में , चाहे रिक्शे वाले , हर जगह लोग हिंदी बोल लेते हैं l पूर्वोत्तर भारत में एक राज्य हैं अरुणाचल प्रदेश जहा पुरे प्रदेश में हिंदी का अच्छा -खासा प्रचलन हैं l अरुनाचाली हिंदी सुनने में बहुत अच्छा लगता हैं l यहाँ के लोग सीधे सरल होते हैं l

मैं हिंदी को बाजार की भाषा नहीं पर जन-जन कि भाषा अवश्य मानती हूँ l पूर्वोत्तर में आज हिंदी कि प्रचार -प्रसार के लिए अनेक संस्थाए काम कर रही हैं l साथ ही कई हिंदी पत्रिकाए भी निकल रही हैं l जिनमे मुख्य रूप से हिंदी संस्थान शिलोंग द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका “समन्न्वय पूर्वोत्तर ” हैं जो क्षेत्रीय रचनाकारों को प्रोत्साहित ही नहीं करती वल्कि हिन्दुस्थान के रचनाकारों के साथ जोड़ने में भी मदद करते हैं , असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति , असम की सबसे पुरानी स्वयंचालित संस्था हैं l यह संस्था १९३८ में हिंदी प्रचार और प्रसार के लिए स्थापित हुई थी l जो आज भी सुचारू रूप से चल रही हैं l समिति दो द्विभाषिक हिंदी पत्रिका निकालती हैं , एक “द्विभाषिक राष्ट्रभाषा” तो दूसरी “द्विभाषी राष्ट्रसेवक ” l इस संस्था के जरिये हिंदी कि प्रचार और प्रसार किया जाता हैं l यह समिति १९४८ से स्वतंत्र रूप से हिंदी परिक्षाए संचालित करती आई हैं ,प्रबोध विशारथ और प्रवीन की परिक्षाए आयोजित भी करते हैं l सुदूर मणिपुर से भी केन्द्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा अनुदान प्राप्त पत्रिका” लट्चम” अहिन्दी भाषी लेखको द्वारा हिंदी सेवा में व्रती हैं l हिंदी प्रदेश के लोग हिंदी बोलते ही हैं पर पूर्वोत्तर के विभिन्न जन समुदाय के लोगों द्वारा हिंदी में बात करना मैं इसे फक्र समझती हूँ l हालांकि , हिंदी सिनेमा , हिंदी गाने और दूरदर्शन द्वारा भी हिंदी बोलने और समझने में सहायक सिद्ध हुआ हैं l एक बार मैं अपनी बेटी के साथ बाज़ार से रिक्शे में आ रही थी , आठ बजने में कुछ ही मिनट बाकी था l रिक्शा वाला तेज़ रिक्शा चला रहा था l मैंने उससे पूछा इतनी तेज़ क्यों भाग रहे हो ? उत्तर में हिंदी में ही बोला- “दीदी झाँसी की रानी शुरू होने वाली हैं l ” इसलिए मेरे हिसाब से हिंदी बोलना बिलकुल गर्व की बात हैं l

मैं नहीं मानती कि हिंदी गरीबो, अनपढो की भाषा हैं l जो अपनी मातृभाषा में बात करने में हिचकते हैं l वह भला देश का क्या सम्मान करेगा ? हिंदी हिंदुस्तान की भाषा हैं हमारी पहचान हैं l चाहे हम किसी भी जन समुदाई से आते हैं l जो लोग हिंदी भाषा के बारे में ऐसा समझते हैं उनके लिए मुझे बहुत दुःख होता हैं l अगर ऐसा होता तो हिंदी का विकास इस तरह से नहीं होता l आज केन्द्रीय सरकार के कार्यलयों और हिंदी संस्था तक सिमित नहीं हैं l हिंदी की भाषा अगर गरीबों तक सिमित रहता तो हिंदुस्तान के अति गर्वित संस्थान हमारे तीनो सेना में हिंदी का प्रचलन न होता l सेना के बड़े से बड़े अधिकारी हो या जवान , महिलाए हो या बच्चे सभी बड़े इज्जत के साथ हिंदी में बाते करते हैं l चाहे वो किसी भी प्रदेश से क्यों न हो , कोई-कोई महिलाये तो हिंदी बिलकुल नहीं जानती पर जब वापस जाती हैं तो हिंदी सीख कर जाती हैं l मेरा बचपन फौज में बीता हैं l वही स्कूल में तालीम की शुरुआत , यानी हिंदी से मेरा नाता जन्म से ही रहा हैं l हिंदी में बाते कर मैं स्वयं को गर्वित महसूस करती हूँ l
हमारे बड़े-बड़े विद्वान , साहित्यकार और स्वतंत्र सेनानी सभी हिंदी से प्रेम करते थे l पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा , पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी हिंदी में हस्ताक्षर करते थे l इतना ही नहीं हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सबसे ज्यादा अहिन्दीभाषी लोग ही सामने आये थे ,वो चाहे महात्मा गाँधी जी हो, कविगुरु रविन्द्र नाथ ठाकुर हो या फिर बालगंगाधर तिलक l बहरहाल कारण कुछ भी रहा हो पर हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा यद्धपि न मिला हो परन्तु हिंदी ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति जरुर पा ली हैं वर्ना हमारे देश के केन्द्रीय हिंदी संस्थान में विदेश से हिंदी सीखने के लिए विद्यार्थी न आये होते , विदेशी छात्र -छात्राओं के मुह से शुद्ध हिंदी उच्चारण सुनकर दंग रह जायेंगे l इसीलिए मैं यह कटाई नहीं मानती कि हिंदी गरीबो या अनपढो की भाषा हैं l हिंदी श्रेष्ठ भाषा हैं , हमारे देश की भाषा हैं ,मीठी भाषा हैं l अत: मुझे अपनी हिंदी भाषा पर बहुत गर्व हैं l
जय हिन्द ,जय भारत l

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