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कहाँ होती हैं बेटी पराई ??? (लघुकथा ) दुबारा पोस्ट -contest

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कहाँ होती हैं बेटी पराई ???

“क्या हुआ?”
“बेटी”l
” लो पराई अमानत फिर आ गई l ” बुदबुदाई थी अम्मा l बेटे की चाहत ने न चाहते हुए भी कंचन को पांच बेटियों को जन्म देना पड़ा था l पति जसवीर स्वयं भी यही चाहते थे कि उसके घर एक चिराग आये पर इस बार भी जब बेटी ने जन्म लिया तो उसकी आशा में पानी फेर दी l मगर वह हर मानने वालो में से नहीं थे l अगले साल कंचन फिर गर्भवती हुई l ईश्वर ने इस बार उनके मनोकामना पूरा कर दिए l कंचन ने एक सुन्दर बेटे को जन्म दिया l अम्मा तो पोते को पाकर फूली नहीं समां रही थी l नाम रखा चिराग ,बेटा घर में क्या आया बेटियों को वह प्यार नहीं मिला l दादी खास करके पोते को सर चड़ाकर रखती ,उसकी हर जीद पूरी की जाती मगर बेटियों को वह हक़ नहीं था l परन्तु कंचन अपनी बेटियों का बहुत ख्याल रखती l यह देख अम्मा कहती ज्यादा मोह मत लगाओ अपनी बेटियों से वह पराई अमानत हैं l मगर अम्मा को कौन समझाए कि बेटा हो या बेटी औलाद का दर्द तो एक ही हैं l वक्त के साथ बच्चे बड़े होने लगे l बेटिया पढाई में बहु होशियार थी l परन्तु चिराग को पढना अच्छा नहीं लगता था l ऊपर से दादी के लाड -प्यार ने उसकी आदत बिगाड़ रखी थी l l कंचन से कहती रहने दे उसका मन नहीं लगता तो उसे तंग मत कर l “यह सुन कंचन मन मसोसकर रह जाती फिर धीरे से बुदबुदाती अपने बेटे को तो निकम्मा बनाया अब मेरे बेटे का जीवन बिगाड़ने पर तुली हैं l ” वक्त करवट बदलने लगा बेटिया पढ़ लिखकर काबिल बन गई ,परन्तु दादी का लाडला बिगड़ गया l वह धीरे-धीरे बुरे संगत में पड गया ,जब पता चली बहुत देर हो चुकी थी l सिगरेट की कश से शुरू होकर शराब की लत तक नजाने कितने रूपये फुक डाला उसने , इधर बहने पढ़कर काबिल बन्ने लगी उधर वह दिन ब -दिन बदतर जीवन की और अग्रसर होने लगा l यह देख दादी को अपनी गलती का एहसास होने लगा l परन्तु वह करती भी क्या ? घर का चिराग बुझने की कगार पर था l पहली बार उसे एहसास हुआ बेटा-बेटी में भेदभाव का , अपनी पोतियों को वह जिस प्रकार का व्यव्हार करती थी ,आज पश्चताप हो .रही थी l पर अब पछताय क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत l चिराग की हालत का जिम्मेदार वह खुद थी l ऐसी घडी में एक माँ पर क्या बीती होगी जिसका बेटा मृत्यु के कगार पर खड़ा था l लेकिन कंचन के पास अब भी एक आस थी उसके पास जो पांच पुत्रिया थी l एक दिन कंचन की बड़ी बेटी नेहा ने कहा – “फ़िक्र मत करो माँ ,हमारे चिराग को कुछ नहीं होगा l मैं इसकी इलाज करवाउंगी l उसने एकदिन नशामुक्ति केंद्र का पता पा लिया और फिर वह अमृत की भाँती बरदान बनकर नशामुक्ति केद्र में अपने एकलौते भाई को ले गई , किस्मत अच्छी थी कंचन की जिसे बेटियों का सहारा था l काफी कठिन समय व्यतीत करके आखिर चिराग ठीक हो गया l पहली बार दादी के मुख से कंचन ने सुना “कहाँ होती हैं बेटी पराई ???

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