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अब कोई अहंकार बचा नहीं (कविता) – contest

मेरी कहानियां
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अब कोई अहंकार बचा नहीं (कविता)

मैं , मेरा और
मैंने किया
इन शब्दों में
उलझकर मैं,
अपने जीवन को
अर्थहीन बनाता रहा l
अहंकार रूपी
अन्धकार की चादर
ओढ़े मैं ,
कभी नहीं समझ पाया
जीवन का अर्थ !
भागते-दौड़ते
भौतिक सुख की तलाश में
मैं , अनवरत,
दौड़ता ही रहा
लेकिन
उस ख़ुशी और संतुष्टि से
मैं कोसो दूर ही रहा l
भागम-भाग जीवन में
ख़ुशी की लौ तलाश करते
मैं ,
भटकता ही रहा
और फिर एकदिन ……..
जब मैं जिंदगी को
समझने की कोशिश
कर ही रहा था
कि यकायक
मेरा जीवन
थम सा गया l
निर्जीव पड़े जीवन में
अब कोई अहंकार बचा नहीं
न ही भौतिक सुख के लिए
भागने की हैं कोई जल्दी !!

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