मेरी कहानियां
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विडम्बना (लघुकथा )
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अक्सर देखा हैं मैने उसे एक उच्च नस्ल के कुत्ते को प्यार करते। वह उसे नहलाता, खिलाता,पिलाता,सुलाता ,हर तरह से उसका ख्याल रखता। ऐसा लगता मानो वह कुत्ता नहीं वल्कि उसी का बच्चा हैं। जो भी देखता ,सोचता कितना पशु प्रेम हैं……..!
और दूसरी तरफ। उसी घर के एक कोणे पर पड़ी हैँ , एक बुढी माँ, जो लाचार हैँ। ठीक से न उठ पाती हैँ न ही बैठ पाती हैँ। बस पड़ी रहती हैं खटिया पर , ऊपर से मोतियाबिंद के कारण आँखों से भी ठीक से देख नहीं पाती अपने किस्मत पर आंसू बहाते रहती हैं , चाहती जरूर हैँ दो मिनट उनके पास आकर कोई बैठे मगर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं हैं उस घर मे। । उसका बेटा भी नही? हे भगवान् ये कैसी विडंबना हैं !!!!!!!!!!!!!!
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