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दायरे (कविता)

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दायरे (कविता)
जरुरी नहीं
कि तुम जो चाहो
वही
और कोई भी चाहे
पसंद -नापसंद
सबकी अलग है
समय – असमय
मौके की बात हैं
फिर क्यों न चले हम
अपने-अपने रास्ते
सूर्य – चाँद की भांति
अपने ही क्षेत्र के भीतर
जहां न हो कभी
भावनाओ का हस्तक्षेप
न ही बाधित हो
रिश्तो के मायने …………
रीता सिंह “सर्जना”

दायरे (कविता)

जरुरी नहीं
कि तुम जो चाहो
वही
और कोई भी चाहे
पसंद -नापसंद
सबकी अलग है
समय – असमय
मौके की बात हैं
फिर क्यों न चले हम
अपने-अपने रास्ते
सूर्य – चाँद की भांति
अपने ही क्षेत्र के भीतर
जहां न हो कभी
भावनाओ का हस्तक्षेप
न ही बाधित हो
रिश्तो के मायने …………

रीता सिंह “सर्जना”

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