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पीड़ा (कविता)

मेरी कहानियां
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नहीं!
और अब नहीं!
तुम्हे घुसने न दूंगी
मैं
अपने दायरे के भीतर
तुझे खुश होने नही दुंगी
बहुत दिया मैने
तुम्हे सह
और गले लगाया पीड़ा को
तुम्हारे प्यार में सराबोर हो
बहुत सहलाया और तुम्हे
पुचकारा भी मैने
तुम्हारी खुशी और मेरी पीढा के बीच का
अंतर्दव्न्द मुस्कान बन खिलने लगे
मेरे तन और मन में
दर्द का सैलाब बनकर
पर अब और नही!
हथियार मैने भी उठा ली है
प्रतिपक्ष के रूप में
नहीं!
और अब नहीं!
तुम्हे घुसने दूंगी
पीड़ा के रूप में मेरे

जेहन के अंदर।

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